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कवि आत्मा है, मनुष्य शरीर है।

कवि जीभ है, मनुष्य नमक है।

कवि प्यास है, मनुष्य पानी है।

कवि भूख है, मनुष्य रोटी है।

 

कवि खाना खाता है। कवि दारू पीता है। 

कवि हवाईजहाज में बैठता है। कवि छापाखाने में जाता है।

कवि पैसा लेता है,

ऊपर के नोट पीछे की जेब में रखता है ।

कवि गरियाता है, कवि जलता है, सड़क पर कचरा फेंकता है,

लाइन तोड़ता है, आंख और कमीशन मारता है,

ऊंघता है, टरकाता है, घूरता है, झपटता है और, एकतरफा प्रेम में असफल होता है।

 

कवि अस्पताल, बैंक, स्कूल, फिल्म, रेस्टोरेंट, देह,

मेह, मोबाइल, नाचघर और क्रिकेट को भोगता है।

कवि आरटीआई लगाता है 

और क्रांति का भुट्टा खाता है,

पर 

कवि स्कूटी का लाइसेंस नहीं रखता।

 

ये ऐसे ही कवि की मनोहर कहानियाँ हैं

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