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Yashwant Vyas

‘अगर आपके हृदय के रेज़र में धार नहीं है तो परिस्थितियों की शेविंग क्रीम का कोई गुनाह नहीं &#82


मेंने पिछले दिनों हितोपदेश पर खासा काम किया। इधर अहा! जि़ंदगी पांचवें साल में प्रवेश कर रही थी और मैंने जंगल के लिए लिखे गए हितोपदेश को कार्पोरेट जंगल के लिए हिट-उपदेश में बदलने का विचार किया। द बुक ऑफ रेज़र मैनेजमेंट के तौर पर यह किताब तैयार हो गई। नए वर्ष में शामिल होते हुए मुझे इसका एक अंश आपसे बांटने की इच्छा हो आई। अंश कुछ इस तरह है – जन्नत की तमन्ना में लोग बूढ़े हो जाते हैं। कंपनियां जन्नत के मजों के लिए कर्मचारियों को प्रवेश नहीं देतीं, वे उनकी उपयोगिता को देखती हैं जो कंपनी संचालकों के जीवन को जन्नत बना सके। इस जन्नत से कुछ खुशबूदार झोंके कर्मचारियों की तरफ भी फेंके जाते हैं ताकि वे उसमें अपना हिस्सा महसूस कर सकें। जब आप चालीस पार हो जाते हैं तो संचालक आप में रोमांच की कमी खोजने लगते हैं, जबकि आप अपनी लंबी सेवाओं तथा निष्ठाओं के प्रतिफल में जन्नत के क्षणों की वर्षा की उ मीद लगाए बैठे होते हैं। मंदविष नामक एक सर्प ने इसीलिए रे$जर मैनेजमेंट का सहारा लिया। उसकी कथा को पढ़कर हम एक हिट-उपदेश सीख सकते हैं। जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है उसका विष मंद हो चला था। पूर्व में उसका नाम तीक्ष्णविष रहा होगा। बहरहाल, उसके नए साथी किसी और तालाब में तैरते और शिकार करते होंगे किंतु मंदविष वृद्धावस्था की ओर बढऩे के कारण उतना सक्षम नहीं रह गया था कि तालाब बदल ले या खूब शिकार करके आनंदित रह सके। जैसे एक सीमा के बाद कुछ लोगों की कंपनी बदलने की हैसियत खत्म हो जाती है। वह एक दिन अचानक उदास होकर एक पत्थर के सहारे टिका बैठा तो कई दिन वहीं बैठा रहा। मेंढक आसपास से गुजरते तो वह उनके शिकार को नहीं लपकता। न उसने ऐसा प्रकट किया कि वह किसी धूर्तता के तहत इतना शांत है। कुछ मेंढकों ने साहसपूर्वक उससे पूछा कि आजकल इतना शांत और उदास यों बैठा रहता है तो सर्प ने एक किस्सा सुनाया। मंदविष ने कहा, पिछले दिनों एक स्वह्रश्वन आया जिसने मुझे पिछले जन्म के शाप की याद दिला दी है। हुआ यों कि पिछले जन्म में भी मैं सर्प ही था। एक जंगल से गुजरते ब्राह्मïण और उसके युवा बेटे की राह में आकर मैंने बेटे को डस लिया। इस पर पुत्र वियोग में ब्राह्मïण ने शाप दिया कि तुम जब तक उपकार के ऐसे काम में न लगो जिसमें तुमसे भय खाने वाले भी प्रेम करने लगें तब तक तु हें हर जन्म सर्प का ही मिलता रहेगा। मैं उदास इसलिए हूं कि यह जन्म भी जा रहा है और मेरी मु ित के कोई आसार नज़र नहीं आते। एक मेंढक ने उसे कहा, ‘तुम उपकार यों नहीं करते?Ó सर्प ने जवाब दिया, ‘कोई विश्वास नहीं करता। मैं सांप हूं और मेंढकों के बच्चों को पीठ पर बैठाकर तालाब में सैर करवाऊं, यह मेरी हार्दिक इच्छा है। कौन ऐसा पुण्य करने का अवसर प्रदान करेगा?Ó उस मेंढक ने यह बात सुनी और दूसरे मेंढक से कहा। दूसरे से तीसरे और तीसरे से तमाम मेंढकों तक यह बात पहुंची कि मंदविष सर्प अपनी शाप मु ित के लिए उपकार करना चाहता है। इसके लिए शिकार समझे जाने वाले मेंढकों के बच्चों को पीठ पर बिठाकर सैर कराने को तैयार है। धीरे-धीरे विश्वास बढ़ता गया और कुछ बच्चों को उसने तालाब की सैर भी करवा दी। अब रोज कतार लगने लगी, वह सैर कराने लगा। एक माहौल बन गया कि मंदविष सर्प की सवारी का आनंद लिया जाए और सैर का मजा लूटते-लूटते उसे पुण्य देने के भागी भी बनें। बात मेंढकों के राजा तक पहुंची। राजा ने भी एक दिन दरबारियों के साथ मंदविष सर्प की पीठ पर बैठकर तालाब की सैर की। उन्हें आनंद आया। वे भी कभी-कभी इस क्रम का आनंद लेने आने लगे। आपको लगा होगा कि कहानी का रहस्य इस बात में है कि सर्प चतुराई से कुछ मेंढक खा जाता होगा। ऐसा बिल्कुल नहीं है। रहस्य इस बात में है कि मेंढक राजा ने एक दिन पूछा, ‘अब तु हारी सवारी में वह रोमांच नहीं रहा। कभी एक थ्रिल था, जब तुम तेजी से तैरते थे। अब तु हारी चाल में पुरानी तेजी नहीं रही। धीमी सैर से मजा धीमा होता जा रहा है।Ó ऐसे ही जैसे कभी-कभी कंपनी प्रमुख अपने ढलती उम्र वाले साथियों से संकेत में कह दिया करते हैं। सर्प ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, ‘स्वामी, आपकी कृपा से क्रमश: शाप मु ित से मेरा मन पवित्र होता जा रहा है किंतु आहार के अभाव में मैं आपकी उचित सेवा नहीं कर पाता इसका मुझे खेद है।Ó इस उ ार में ‘पवित्रताÓ और ‘खेदÓ ने बड़ा काम किया। मेंढकों के राजा ने तुरंत व्यवस्था दी कि सर्प के भोजन का पर्याह्रश्वत इंतजाम हो। इसकी व्यवस्था प्रमुख दंडाधिकारी स्वयं देखे और सर्पराज सभी को इसी प्रकार तालाब की सैर कराते रहें। सर्प को खाने को अपने आप दंड पाए मेंढक मिलने लगे। मेंढकों के बच्चों को तालाब की सैर भी वह बदस्तूर करवाता रहा। इस प्रकार तथाकथित शाप मु ित भी हुई और शिकार का झंझट भी मिटा। वृद्धावस्था परम आनंद में स मानपूर्वक कट गई। कुछ लोग इस हिट-उपदेश की बजाय सीधे हितोपदेश में जाते हैं यानी शास्त्रीय उदाहरणों का अनुसरण करते हैं। उनके पहले के किसी साथी ने इस मौके पर या किया था, यह उनका पैमाना बन जाता है। यदि ऐसा किया जाए तो उ त सर्प का उद्देश्य मेंढक के बच्चों की सैर से शुरू होकर उसके राजा को खाने तक जा पहुंचेगा। इस सपने को किसी कंपनी में पूरा करना लगभग असंभव है। लोग पारंपरिक धारणाओं से बंधे रहते हैं। यहां तक कि चालाकियां भी पारंपरिक ही करना पसंद करते हैं। धूर्तताओं के विचार यदि पारंपरिक होंगे तो कहानियों के अंत भी उसी तरह के पारंपरिक उपदेश में खत्म हो जाते हैं। आप होते तो या करते? लॉर्ड चैस्टरफील्ड ने कहा है दूसरों से बुद्धिमान हो सको तो बनो मगर उन्हें यह बताओ मत! इस परिस्थिति में आप कुछ विकल्प सोचिये-1. भूखों मरने को अपना भाग्य मानते। 2. जितना संभव होता, झपटकर छोटे-मोटे शिकार करते और किसी तरह जीवन चलाते। 3. तालाब बदलने की सोचते पर यह विचार इसलिए त्याग देते कि दूसरे तालाब में भी इस उम्र में यही गति होगी। 4. शुरू में मेंढकों को विश्वास में लेते, फिर चोरी-छुपे कुछ मेंढकों को कूटनीति से अपनी ओर मिलाकर उनके जरिये नन्हे मेंढकों को मारने का गुह्रश्वत रास्ता बना लेते? पहला विचार (भूख को अपना भाग्य समझना) हताशा का सूचक है, जो $िजंदगी को नर्क बना देता है। दूसरा विचार (मजबूरी के छोटे-मोटे शिकार) हताशा में हाथ-पैर फेंककर कुछ राह निकालने भर का है। तीसरा विचार (तालाब बदलना) कंपनी बदलने जैसा है पर वहां आपको अवसरों में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही। संभवत: आपको कोई कंपनी लेना भी न चाहे। चौथा विचार (यानी कुछ को अपनी ओर मिलाकर गुह्रश्वत रास्ता निकालना), कूटनीतिक दिखाई देता है किंतु इसमें पर्याह्रश्वत बौद्धिक श्रम की जरूरत होगी। फिर भी उसकी सफलता असंदिग्ध नहीं है। योंकि हो सकता है, कभी भेद खुल जाए तो स्थिति वर्तमान से भी बदतर हो जाए। हममें से अधिकांश चौथे उपाय पर लपकते हैं। उसमें जोखिम है किंतु कॉर्पोरेट दुनिया में क्रूरता का जो गुण क्रमिक रूप से सीखा जाता है उसमें जोखिम का भी एक रोमांच होता है। इसकी आदत पड़ जाती है। जीवन के आखिरी दौर में दुबारा प्रासंगिक बनने के लिए यह रोमांच और आकर्षित करता है। इस अद य आकर्षण में कई वरिष्ठ पदों पर लंबे समय से टिके ए जी यूटिव भी मारे जाते हैं। चौथा विकल्प कि आप कूटनीति में सफल होंगे आपको अपनी प्रकृति के विरुद्ध उकसाता है। यह आपको धूर्त बना सकता है किंतु नौकरी के आखिरी दिनों में अपनाई गई धूर्तता मानसिक कष्टï देती है। दरअसल, धूर्तता की प्रकृति चलती होती तो वृद्ध होने से पहले ही बात बदल जाती। जो रे$जर मैनेजमेंट को समझते हैं, वे पांचवां विकल्प अपनाते हैं, जिसे मंदविष ने अपनाया। वह ईमानदारी से मेंढकों के बच्चों को सैर कराता रहा और इसके बदले में स मानपूर्वक उसकी जीविका की व्यवस्था भी हो गई। उसने बुद्धि से सिर्फ एक स्वह्रश्वन की कहानी गढ़ी, किंतु उस बुद्धिमता को शेष पर जाहिर नहीं होने दिया। कंपनियां ऐसे विकल्प अपनाने वालों की सेवानिवृ िा तक भावभीने तरीके से करती देखी गई हैं ताकि वे अंतिम दम तक कंपनी के ‘ब्रांड एंबेसडरÓ की तरह बने रहें। किंतु, स्वामिभ ित में कभी-कभी ब्रांड एंबेसडर से आगे निकलने की आकांक्षा का या फल होता है, इसे जानने के लिए रे$जर मैनेजमेंट के बाकी हिट-उपदेशोंं पर विचार करना होगा। या हम नए साल में इसकी शुरुआत नहीं कर सकते।

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