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Yashwant Vyas

एक प्लेट भाषण दो गिलास कहानी


आजकल भूख का रुख बदल गया है। वह सत्तू, लिट्टी, पोहे, इडली, बर्गर, भटूरे से हटकर भाषण पर टिक गई है। भाषण पहले भी दिए जाते थे और भूख पहले भी थी, लेकिन लाइव भूखे भाषणों की ऐसी चमक कभी न थी।

पहले एक कॉलेज में मोदी जी आए। उन्होंने विकास का एक लेक्चर पिलाया। उसमें दो कहानियां थीं और एक गिलास था। उन्होंने बताया कि पानी आधा भरा, गिलास आधा खाली नहीं होता। जवाब में राहुल जी प्रकट हुए। उन्होंने कहानियां सुनाईं और एक महोदय का हाथ पकड़ कर बताया कि चीन और भारत में क्या फर्क है।

दोनों मैनेजमेंट पढ़ा रहे थे। दोनों देश को ज्ञान दे रहे थे। दोनों लाइव थे।

दोनों के साथ वाले सेवक, भाषणों को आमने-सामने रखकर ऐसे पेश कर रहे थे जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बहस से देश बदलने का हिसाब कर रहे हों।

इन कहानियों से हमें बताया जा रहा है कि हमें क्या करना चाहिए। बताने वाले वे हैं जिनके बारे में बताया जाता है कि वे ही करने वाले हैं। क्रांति उनके प्लेट भर लाइव भाषण पर टिकी है और वे दो गिलास कहानियां पी-पी कर आपको कोस रहे हैं कि अरे अभागो तुमने अब तक ऐसा क्यों नहीं किया? हम तो आइडिया दिए जा रहे हैं और तुम हो कि आगे बढ़ते ही नहीं।

बात मार्के की है। उन्होंने हमारी खातिर भाषणों की शैली बदल ली है। वे व्हार्टन और ऑक्सफोर्ड की बात करते हैं। वॉलीबाल हाथ में लेकर लीडरशिप और पेंसिल हाथ में नचाकर टीम भावना पर मंत्र पढ़ते हैं। ‘डिविडेंड’, ‘प्रॉफिट’, ‘ग्रोथ’, ‘टारगेट’ आदि-इत्यादि का फर्क समझाया जा रहा है।

चीन, अमेरिका और मराठवाड़ा एक साथ खोपड़ी पर दनादन पड़ रहे हैं, और हम हैं कि उनके विजन की महानता पर मुग्‍ध होने में भी कंजूसी कर रहे हैं। वे ज्ञानियों के बीच ज्ञान बांटते हैं। यह ज्ञान लाइव होकर हम अज्ञानियों के जीवन को आलोकित करने आगे बढ़ता है। पर हम हैं कि ट्विटर-फेसबुक को क्रांति का प्लेटफॉर्म देकर आगे बढ़ लेते हैं।

पान की दुकान पर बात करो तो भी चार लोग मिल कर क्या कहते हैं? अरे, अब बाबा रामदेव की कौन सुनता है। नई पार्टी की सरकार में भी दारू का ठेका उसी के नाम छूटा है, जिसका पिछली सरकार में था। जंतर-मंतर में अब जान नहीं रही। मोदी तेज तो हैं। राहुल जी जरा बांहें चढ़ाए रखना। खेमका का पैंतालिसवां तबादला हो गया है। राजा भैया को क्लीन चिट मिलने वाली है। नई की नई बिल्डिंग गिर गई है, पर सरकार गिरने वाली नहीं है।

तो, हम क्या करें? अब तो जो भी करेंगे मोदी जी करेंगे या राहुल जी करेंगे। हम तो क्रांति की बारात में जाएंगे और खाली लिफाफा टिकाकर, खाते-पीते-नाचते लौट आएंगे। टी.वी खोलेंगे और शांति से पूछेंगे, आईपीएल का कैटरीना वाला नाच रिपीट हो रहा है कि नहीं? सिक्सर लगे तो चीयरगर्ल्स दिखें।

इसी दौरान अरविंद केजरीवाल नामक शख्स ने तेरहवें दिन अनशन पूरा किया है। उनका कोई ‘लाइव’ नहीं था। वे बिजली-पानी के लिए अनशन पर थे। दिसंबर में चौबीस घंटे लाइव दिख रहे अन्ना हजारे की यात्रा अप्रैल में बीस-तीस के झुंड से खिंच रही थी और जब तक धूल बैठती, एक बेटी फफकती हुई कह रही थी, मैंने जबसे होश संभाला तबसे अपने पिता को नहीं देखा। मां कहती थी, चंदा मामा के पास गए हैं।

इकत्तीस साल बाद, जब मुझे पढ़ाकर मां ने आईएएस बना दिया है, फैसला आया है कि पिता को पुलिस के उनके साथियों ने ही मार डाला था। जिन बारह गांव वालों ने इस घटना को देखा था, उनकी गवाही भी मुठभेड़ दिखाकर हमेशा के लिए दफन कर दी गई।’

वह चंदा मामा से पूछ सकती है। चंदा मामा कहानी नहीं सुनाते। चंदा मामा कहानी में आते हैं। चंदा मामा का भाषण लाइव नहीं होता। चंदा मामा अदालत को ऊपर से इकत्तीस साल तक देखते रहते हैं।

आप गिलास के पानी में चंदा मामा की परछाई देख सकते हैं और प्लेट में पानी भरकर भी। मगर, देश के कर्णधारों के पास प्लेट में भाषण है और दो गिलास भर कहानियां।

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