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  • Writer's pictureYashwant Vyas Archive

घीसू एक किताब लिखना चाहता है


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लेकिन कल के बाद घीसू अचानक बदल गया। उसने तय किया है कि वह अब किताब लिखेगा।

‘तुम अपनी किताब में क्या लिखोगे? न तुम सोनिया गांधी के ड्राइंगरूम में कभी घुसे न मनमोहन सिंह के लॉन में ही कभी एंट्री हुई। तुम्हारी किताब में क्या होगा जो वह सच में कोई किताब होगी?

घीसू ने इस सवाल को लतीफे की तरह सुना। ‘मैं बता सकता हूं कि जिस समय जंतर-मंतर पर भेल बेच रहा था, तीन लोग मेरे पैसे खा गए। वे तीनों अब मशहूर नेता हैं, जिनमें से दो, पिछली सरकार में मंत्री थे। उसने कहा।

‘तुम कैसे साबित कर सकते हो कि उन्होंने तुमसे भेल ली भी थी?

‘किताब साबित करने के लिए नहीं लिखी जाती। हर कोई जानता है कि मुफ्तखोरी के सबूत की जरूरत नहीं होती। नेताओं के लिए यह हक की बात है।

‘जब इतनी आसानी बात है तो तुम्हारी किताब खरीदेगा कौन? उसमें कुछ तेज मसाला भी होना चाहिए।

‘मैं लिख सकता हूं कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी एक शाम महात्मा गांधी को याद करते हुए भावुक हो गए थे और मैंने जब सिके हुए भुट्टे पेश किए तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। अलबत्ता भुट्टे के पैसे तीन कांग्रेसी प्रवक्ताओं ने दिए थे।

‘यह और भी विचित्र बात है। सोनिया-राहुल तुम्हारे भुट्टे खाने आएं और महात्मा गांधी की याद में भावुक हों, यह गप्प लगती है।

‘गप्प तो यह भी लगती है कि कोई कांग्रेसी प्रवक्ता किसी भुट्टे वाले को पैसे दे सकता है।

‘तुम्हें कांग्रेस की बजाय खुद की बात करना चाहिए। किताब तुम्हारी है, तुम अपने जीवन के रहस्य खोलो, दूसरों से क्या मतलब?

‘किताब तो दूसरों के रहस्य खोलने के लिए ही लिखी जाती है। क्या में यह लिखूं कि मैं फुटपाथ पर रात को कितने की रंगदारी चुका कर सोता था? या मैं यह बताऊं कि मेरी तीन बार जेब काटने की इच्छा हुई लेकिन आत्मा ने रोक लिया? असल बात यह है कि मेरी आत्मा पर कौन पढ़ेगा?

‘तो तुम अपने जेब कट अनुभव लिखो। अवैध रिश्ते या बेईमान मन के बारे में लिखो। थोड़ा खुद के प्रति ईमानदार दिखो!

घीसू गंभीर हो गया। उसकी मुश्किल यह है कि उसे रिश्ते ही मुश्किल से मिले हैं। उसमें वैध-अवैध का फर्क कैसे करे? ईमान बेचने की हर कोशिश उसकी आत्मा ने विफल कर दी, तो इस आत्मा के अध्याय कैसे लिखे?

‘तुम जब आत्मा और ईमान में इतने फंसे हुए हो तो किताब लिखने की जरूरत क्या है? आराम से झुनझुना लेकर भेल बेचते रहो। किताबों का काम उन पर छोड़ दो जो देश-दुनिया के धंधे में लगे हुए हैं।

घीसू और गंभीर हो गया है।

उसे डराया गया है कि यदि उसने किताब लिखी तो उसके जवाब में किताब लिखी जाएगी। पर वह डरने को तैयार नहीं है। वह किताब में अपनी बीवी, अपने बच्चों का कोई जिक्र नहीं करना चाहता। वह एक अध्याय में लालकिले की प्राचीर और पन्द्रह अगस्त के भाषणों का चरबा डालना चाहता है। वह अपनी झुग्गी डूबने और कॉमनवेल्थ गेम्स के वक्त लुटी हुई रेहड़ी पर कुछ नहीं लिखना चाहता लेकिन उस दौर की मुख्यमंत्री के राज्यपाल में बदल जाने की बात को दोहों में शामिल करना चाहता है।

उसक एक पूरा का पूरा अध्याय कोयला खदानों और क्रिकेट के भारत रत्नों पर चला जाएगा। उसे लिखने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि उसके नाम से मनरेगा में कौन पैसा खा गया, वह देश में आर्थिक क्रांति पर अध्याय जोडऩा चाहता है। वह यह बिल्कुल नहीं लिखना चाहता कि उसने रात के अंधेरे में कफ्र्यू का सच देखा था। वह शांति की तलाश में इंडिया गेट की तफरीह का चिट्ठा पेश करना चाहता है।

मैंने उससे कहा है, वह इस तरह की शाकाहारी चीजें लिखेगा तो किताब कौन पढ़ेगा? कोई गोपनीय रहस्य नहीं खुलेगा तो तुम्हारे इंटरव्यू क्यों लिए जाएंगे?

घीसू अड़ा हुआ है। घीसू मुस्कुरा रहा है। घीसू को पब्लिशर चाहिए।

संजय बारू और कुंवर नटवर सिंह के प्रशंसकों को उस पर हंसी आ रही है।

वे प्रतीक्षा में हैं कि यह किताब छपे तो उसके रद्दी पन्नों पर भेल खाएं। घीसू का क्या, उसे तो अंतत: भेल ही बेचनी है।

*और अंत में ….

“पत्थर और पानी के बीच जंग में, आखिरकार पानी ही जीतता है।” -रमण सैनी ने भेजा

Illustration by Vikram Nandwani is used visth this post 

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