चुनाव के धंधे में दो या तीन काम बहुत मुस्तैदी से होते हैं। पहला सर्वे, दूसरा ग्राउंड रिपोर्ट और तीसरा बहस। बहस करने के लिए लगातार वाक्य उगलने वाले गले चाहिए। ग्राउंड रिपोर्ट के लिए न थकने वाले पैर चाहिए। सर्वे के लिए छुपा-छुपा कर दिखाने वाले आंकड़े चाहिए। यह और बात है कि इन तीनों को एक-दूसरे का कंधा चाहिए। ईमानदार रिपोर्टर गलियां छान रहे हैं, समझदार विश्लेषक स्टूडियो।
इन सबके बीच परम विद्वानों ने एक सुरक्षित तरीका निकाला है- एक्सक्लूसिव इंटरव्यू। कहा जाता है कि इसमें लेने वाले का भी फायदा होता है और देने वाले का भी। सब कुछ फ्रिज का माल होने के बावजूद दोनों एक्सक्लूसिव के खाते में गिरकर स्टार हो जाते हैं। चुनाव की पूर्व वेला में इस स्तंभकार को एक ऐसी बातचीत का चिट्ठा हाथ लगा है जिसमें सवाल वे हैं, जो पूछे नहीं गए और जवाब वे हैं, जो दिए नहीं गए।
*राहुल गांधी (मैं अब कोई कागज नहीं फाडूंगा)
अभी नामांकन पत्र दाखिल हुए, पता चला कि आपने माता जी से कुछ लाख का लोन उठा रखा है? बहुत सांप्रदायिकता की बातें हो रही हैं। हमें उनका जवाब देना है। बहुत बांटने की बातें हो रही हैं। हमें उनका जवाब देना है। हमें आगे बढ़ने के लिए जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं का कर्ज चुकाना है। लोन उठाना पड़ता है। देश की खेल नीति, विदेश नीति और आर्थिक नीति पर आपकी राय क्या है? हमने विकास की बात की। सुरेश कलमाडी, जो खेल देखते थे, उन्हें टिकट नहीं दिया। शीला जी को गवर्नर बनाकर भेजा। मैं बहुत विदेश गया हूं। विदेश नीति बड़ी साफ है। आर्थिक नीति पर हम हरियाणा मॉडल को पूरी तरह स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। क्या हरियाणा की जमीनों की खरीदी वाला मॉडल आदर्श मॉडल है? आदर्श के लिए आप महाराष्ट्र देखिए। वहां भी हमारी सरकार है। हमारी प्रगति में कहीं भेदभाव को स्थान नहीं है।
आपने ‘प्राइमरी’ के आधार पर प्रत्याशी चुनने का फैसला किया और जब उससे चुनकर एक आदमी सामने आया, तो आपने उसे हटाकर अपने मिस्त्री जी को क्यों भेज दिया? हमने तरक्की की बात की। इलेक्शन में दूसरे के पोस्टर पर अपना पोस्टर चिपकाने का साहस चाहिए। यह साहस गुजरात में इमरान मसूद दिखाएं या यूपी में मधुसूदन मिस्त्री, मुख्य बात यह है कि वह तरक्की के लिए होना चाहिए।
माफ कीजिए, मिस्त्री गुजरात में हैं और मसूद यूपी में……… हम भेदभाव में विश्वास नहीं करते। एजेंडा, हिस्ट्री या लोकेशन और कन्फर्म कर लीजिए, उससे क्या फर्क पड़ता है। तरक्की, तरक्की है।
आप ‘तरक्की’ काफी इस्तेमाल करते हैं, लेकिन लोगों का मानना है कि आपकी वो तरक्की नहीं हुई, जो होनी चाहिए। आपने उत्तर प्रदेश चुनावों में सपा का घोषणापत्र फाड़ दिया था, अपनी ही सरकार का बनाया एक और कागज फाड़ दिया था। सिर्फ फाड़ते ही रहते हैं………. पार्टी हारती रहती है। आप कागजों को रॉकेट बनाकर क्यों नहीं उड़ाते? मैंने फैसला किया है कि अब और कागज नहीं फाड़ूंगा।……… (टिप्पणीः इसके बाद के इन्टरव्यू की स्क्रिप्ट के कागज स्तंभकार को फटे हुए मिले हैं।)
*नरेंद्र मोदी (छापा छोड़ो!आगे बढ़ो!!)
क्या आप सचमुच बचपन से प्रधानमंत्री बनना चाहते थे? कोई बचपन से प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहता। सच तो यह है कि कुछ लोग बचपन से प्रधानमंत्री होते हैं। जब बड़े होकर लोग उन्हें प्रधानमंत्री बना देते हैं, तो जनता को पता चलता है। अभी मैं जिधर देखता हूं, उधर लिखा है -� ‘अच्छे दिन आने वाले हैं।’ किसके अच्छे दिन आने वाले हैं? आप कॉरपोरेट लॉबी के आदमी हैं। क्रूर हैं। आप कुछ भी कर सकते हैं। देश को ऐसा नेता चाहिए जो कुछ भी कर सके। यह आखिरी लाइन जो आपके सवाल में है, इसे हटा लीजिए वर्ना कॉरपोरेट वाले बेकार में डर जाएंगे।
क्या आपसे दोस्त भी डरते हैं? देश के लिए दोस्त और दुश्मन, दोनों पर शासन करना आना चाहिए। मैं देश को प्राथमिकता देता हूं। इसलिए मैंने दोस्त और दुश्मन का भेद ही नहीं रखा। देश में एक आंधी है। पेड़ के पेड़ उखड़ रहे हैं। जहां देखो, वहां माथे ही माथे नजर आते हैं। मुझे इस ज्वार को संभालना है। इससे बिजली बनानी है। यह बिजली दिलों में रौशन होगी, उस रौशनी में देश चमकेगा।
पर ऐसा लगता है अभी भी घोषणापत्र बांटने लायक बिजली नहीं बनी। वह आखिरी दम तक क्यों अटका हुआ है? वह छापने की जरूरत नहीं, वह तो सभाओं में छप्पन इंच के सीने के साथ घूम रहा है। जो बोला जाएगा, वही घोषणापत्र हो जाएगा। और जो घोषणापत्रों में अब तक छपता रहा है, क्या होता आया है? छापा छोड़ो, आगे बढ़ो! ऐसी भी क्या तेजी है? जोशी जी परेशान हैं। गुरु आडवाणी जी को आपने किनारे बैठा दिया है…. आपका वक्त खत्म हो गया है। मैं शहजादा टी स्टाल पर आडवाणी जी के साथ चाय पीते हुए जोशी जी को कभी भी समझा दूंगा। ….. चलो भाई नेक्स्ट…! *अरविंद केजरीवाल (आपका तो सवाल बिका हुआ है जी!) आप के क्या हाल हैं? चारों तरफ साफ दिख रहा है कि लोग आप की सरकार बनाने जा रहे हैं। जो भी अगली सरकार होगी वह आपकी होगी।
क्या मतलब? मतलब मीडिया की। आम आदमी पार्टी के बारे में प्रचार हुआ है कि उसे मीडिया ने क्रिएट किया है। अब मीडिया मोदी को क्रिएट कर रहा है। आप जिसे क्रिएट करते हैं, उसका भविष्य आप ही जान सकते हैं।
आप पहले दिल्ली के भ्रष्टाचार के खिलाफ बोल-बोलकर काम चला रहे थे। गुजरात पर इससे पहले क्यों नहीं नजर पड़ी? आप का तो सवाल ही बिका हुआ है जी!
आपने राहुल के खिलाफ लड़ने की बजाय मोदी के खिलाफ खड़ा होना क्यों चुना? क्या मोदी नंबर वन हैं? सबको सब मालूम है कि मैं कब और क्यों लड़ता हूं। आपका इन्टरव्यू कौन प्रायोजित कर रहा है? नाम बताइए जरा। मोदी ने आपको एके-47 के बराबर रखा है? मोदी के पास तो मुहावरों की किताब है। उनको राजनीति का असली मुहावरा हम सिखाएंगे। लगता है आप उनके पब्लिशर भी हैं। जी नहीं, मैं आपका भक्त हूं। अद्भुत साक्षात्कार लेने की कामना से आया हूं। तो ले लीजिए। आप का टिकट ले लीजिए। मैं तो सड़क पर आनंद करने वाला आदमी हूं। कार हो न हो, सरकार हो न हो, मैं हमेशा ऐसा ही रहूंगा। आप जानो आपका काम कैसे चलेगा? मेरा काम तो ठीक है, आपकी सरकार …… ? वो तो बन ही जाएगी। पर सरकार का यह सवाल भी बिका हुआ है जी!
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