मुझे आस्था एक अजीब दिखने वाली ट्रे में रखे एक मुंह बंद पैकेट की तरह सौंपी गई है और मुझसे यह अपेक्षा की जा रही है कि मैं उसे बिना खोले स्वीकार कर लूं। मुझे विज्ञान तश्तरी में रखी एक छुरी की तरह दिया गया है ताकि मैं उस किताब के फोलियो चीर सकूं जिसके सफ़े कोरे हैं। मुझे संदेह डिब्बे में बंद धूल की तरह दिया गया है – लेकिन मुझे वह डिब्बा दिया ही क्यो जाए जिसमें सिर्फ धूल भरी हो? … ईश्वर कहां है, अगर उसका अस्तित्व नहीं भी है तो? मैं उन अपराधों के लिए जो मैंने नहीं किए रोकर और प्रार्थना करके उन पर पश्चताप करना चाहता हूं ताकि मां के दुलार जैसी क्षमाशीलता की भावना का आनंद उठा सकूं। चाहे वह विशुद्ध रूप से मां से न मिला हो। एक गोद जिसमें रोया जा सके, लेकिन एक विशाल और अनाकार गोद, गर्मी की शाम की तरह विस्तृत, और फिर भी आत्मीय, उष्ण, स्त्रीयोचित, अलाव के पास… ताकि रो सकूं उन बातों पर जिनकी कल्पना न की जा सके, उन असफलताओं पर जिनका वर्णन नहीं कर सकता, उन चीजों के प्रति लगाव के लिए जिनका अस्तित्व ही नहीं, उन सिहरा देने वाले संदेहों के लिए जो मैं नहीं जानता कि भविष्य में काहे से संबंधित हैं … मैंने इतने सपने देखे हैं। सपने देखने से कोई नहीं थकता, योंकि सपने देखना भूलना होता है और भूल जाना सताता नहीं है बल्कि वह एक स्वह्रश्वन रहित नींद होती है जिसमें हम जागते रहते हैं – – फरनान्दो पैसोआ, एक बेचैन का रोज़नामचा में हम पांचवें साल में उतर रहे हैं, यह एक ऐसा अनुभव है जैसे देखते-देखते किसी सपने को नए-नए रंगों में उभरते हुए देखना। लोग माया से मु ित चाहते हैं लेकिन मुक्ति की माया विशाल होती जा रही है। एक बार डॉ. कर्णसिंह से बातों-बातों में एक सवाल करने का मौका मिला था, या वजह है कि चारों तरफ साधुओं-प्रवचनकारों के चेहरे बढ़ते चले जा रहे हैं? उन्होंने कहा, हम दूसरा कुछ यों सोचें। फिलहाल इतना ही सही कि जब अंधकार बहुत ज्यादा हो तो दीये जितने ज्यादा हों उतने भले। यह सादगी से दिया गया जवाब था मगर अन्यार्थ इतने सादे नहीं होते। हमने नए पड़ाव पर कुछ तथ्यों को जुटाने की और एक जगह लाने की कोशिशभर की है। बहुत कुछ छूट सकता है, छूटा होगा, फिर भी अहा! जि़ंदगी टीम ने अपने श्रम को एक दिशा देने की कोशिश की है। कभी-कभी इस तरह, कि जैसा है, वैसा एक साथ सामने तो आ जाए। गलतियां भी अगर हुईं हों तो इरादतन नहीं। उम्मीद है कि आप इस सफर में हमेशा की तरह एक मजबूत साथी बने रहेंगे। हम आपकी अपेक्षाओं पर खरे उतरें इस कामना के साथ आप तक पहुंच रहा है यह विशेषांक 2008 । अहा! शुभकामनाएं
top of page
bottom of page
Comments