इतने दिनों सरकारी खर्चे से देश को बताना पड़ रहा है कि प्रमाण देखो। हिंदुस्तानी हुक्मरान इतने बुरे वक्त से पहली बार गुजरे जब निर्माण करके प्रमाण देने पड़ रहे हैं। बड़ी मुश्किल है। निर्माण भी करो और प्रमाण भी पेश करो। इससे पहले दिल्ली में सरकार को धुआंधार
बोर्ड लगाने पड़े थे जिनमें लिखा था- विकास दिखता है। लोगों को बोर्ड दिखता था। बोर्ड पर लिखा विकास दिखता था। पर विकास मार्ग पर खड़े होकर भी विकास नहीं दिखाई दिया तो नहीं दिखाई दिया। विज्ञापन बनाने वाले जरूर अपना विकास करके निकल लिए।
जनता बड़ी दुष्ट है। इस पर कोई भला लीडर कैसे भरोसा करे? जब बताया जाता है कि देखो कैसा चकाचक एयरपोर्ट बन गया है, तो लोग पड़ोस में ही गुड़गांव की जमीनों के फर्जी कागज लहराने लगते हैं। इनकी नजर सिर्फ उफनती गटर की बदबू पर जाती है, गटर खोदने में मिले काम से हुए आर्थिक विकास पर नहीं जाती। इनकी नजर रेट लिस्ट पर जाती है, फ्रिजर में रखे सेब की गोलाई और चमक पर नहीं जाती। इनकी नजर लैपटॉप-मोबाइल पर नहीं जाती, टूजी-थ्रीजी के घोटालों पर जाती है।
‘जनता न सिर्फ मूर्ख है, बल्कि अहंकारी भी’, उन्होंने कहा।
‘पर आप यह बात सरेआम क्यों नहीं कहना शुरू कर देते? जनता को आत्म निरीक्षण करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। उसका अज्ञान छंटेगा और अहंकार टूटेगा तो सहृदय पवित्र जनता की उज्ज्वलता प्रकट होगी। इस उज्ज्वल प्रकाश में वह आपके निर्माण को देखकर धन्य होना शुरू करेगी।’
‘हम आंखों में अंगुली डालकर दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि देखो देश कहां से कहां पहुंच गया। हमारे पास प्रमाण है कि दस साल में ऐसा हुआ कि 1947 के बाद से नहीं हुआ था।’
‘यानी आप मानते हैं कि 1947 के बाद से कुछ खास नहीं हुआ और उसकी पूर्ति के लिए आपको इतना करना पड़ा?’
‘जो हुआ है, वह हमने किया है। जो नहीं हुआ है, वह दूसरों की वजह से नहीं हुआ है। हम तो करने के शौकीन हैं। करते रहे, कोयले से लेकर हैलीकॉप्टर तक, खेल से लेकर रेल तक। अभी जो आप इतना चहक रहे हैं, वह टेक्नोलॉजी भी तो हमारी ही है। पर जनता इस वरदान को नहीं समझती।’
‘यानी बिल गेट्स और मार्क जुकरबर्ग 1947 के बाद आपकी ही की वजह से देश की पीढ़ी को मुहैया हुए हैं?’
‘आपको अभी समझ में नहीं आएगा। आप हमारे खिलाफ हैं। आपको जब निर्माण नहीं दिखता तो आपको प्रमाण देखने चाहिए।’
वे मुझे प्रमाण देखने की राय दे रहे हैं। मैं निर्माण देखने की जिद कर रहा हूं। बच्चा बीस साल का होगा तो मूंछों की रेखा चमकेगी, पर सरकारें मानती हैं कि वे बच्चे को जीने दे रहे थे, इसीलिए तो वह जवान हो पाया। उनका मानना है कि प्रमाण है कि निर्माण हुआ है। मैं कहता हूं, कहीं प्रमाण का ही निर्माण तो नहीं हुआ है? जब कोई चीज सिद्ध करनी होती है, तो प्रमाण तैयार किए जाते हैं। राजा के पास वस्त्र नहीं थे, लेकिन प्रमाण था, क्योंकि पूरे जुलूस भर लोग कहते रहे, राजा का वस्त्र कितना सुंदर है। सिर्फ एक बच्चे ने कहा, राजा नंगा है। तो, जो बच्चे ने कहा, वह लाखों के लिए सच का सच होना था, पर प्रमाण सब ये दे रहे थे कि कलाकार ने कैसा सुंदर जादुई वस्त्र बुना! अहा राजाजी खिल रहे हैं।
राजाओं के पास प्रमाण-निर्माण की फैक्टरी होती है। वे प्रमाण पहले बनाते हैं, निर्माण बाद में साबित हो जाता है। सरल उदाहरण से समझें। जहां हड़प्पा-मोहनजोदड़ो और पत्थर से आग जलाने वाले रहते थे, वहां एक चिकना फ्लाईओवर है। फ्लाईओवर निर्माण का प्रमाण है। हड़प्पा आदि-इत्यादि प्रमाण के लिए तरस रहे हैं। तो, जिसने फ्लाईओवर पर कार चलाई, उसे इस निर्माण के प्रमाण की कद्र करना चाहिए। संस्कृति मिटाने का प्रमाण बाद की चीज है, फ्लाईओवर का प्रमाण निर्माण की संस्कृति के उत्कर्ष का प्रतीक है।
आपको प्रमाण चाहिए या निर्माण चाहिए? राजा कहते हैं, प्रमाणों का क्या है, वो तो कत्ल में कातिल के पक्ष में भी जुटाए जा सकते हैं। आप हां कहते हैं तो वे कातिल को आजाद कर देते हैं। फिर वे प्रमाण दिखाकर कहते हैं, मकतूल ही कातिल था। आप तालियां बजाते हैं, वे अगले प्रमाण के निर्माण में लग जाते हैं।
वे बता रहे हैं, सूरजमुखी उधर नहीं देख रहा जिधर सूरज है, सूरज उधर की ओर मुड़ गया है जिधर सूरजमुखी था। वे आपके खरबूजे की शक्ति परखने के लिए छुरी पर गिरने का प्रमाण जुटाने को उद्धत हैं। वे ध्रुवीय भालू दिखा रहे हैं और कहते हैं यह जमकर बरफ होने का प्रमाण है। वे गरीब का पतला पेट दिखा रहे हैं और प्रमाण है कि यह सरकारी डाइटिंग प्रोजेक्ट का परिणाम है। वे खा रहे हैं और कहते हैं, यह देश की समृद्धि का प्रतीक है।
किसी जमाने में उन्होंने बताया था कि हमारे सात कदम सूरज की ओर चल रहे हैं। उन्हीं के नक्शे-कदम पर किसी ने इंडिया के पीले चेहरे को पीली रोशनी में शाइनिंग का प्रमाण दिखा दिया था।
प्रमाणों की फैक्टरी चल रही है। पर यह फैक्टरी वही प्रमाण निर्मित करती है, जिसके पीछे उनका धंधा टिका है। हमें विकास नहीं दिखता तो हम रतौंधी के शिकार हैं। हमें निर्माण नहीं दिखता तो हम दया के पात्र हैं। उन्हें भारत निर्माण करने दो। उनके प्रमाण बंटने दो।
अंतत: हम भी सीख लेंगे कि प्रमाण कैसे ‘मैन्युफेक्चर’ किए जाते हैं। तब इनके निर्माणों और प्रमाणों का क्या होगा?
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