आदमी बाबा क्यों हो जाता है? बाबा और बॉबी में क्या कोई अंतर्सम्बंध है? या बांबी, जो सांप की होती है, बाबा से बिगड़ कर बनती है? क्या सभी बाबा संत होते हैं? या सभी संत बाबा होते हैं? संतत्व के लिए बाबागीरी का प्रतिशत कितना होना चाहिए? क्या तैंतीस प्रतिशत प्रवचन, साठ प्रतिशत ठेकेदारी और तीन प्रतिशत दुकानदारी मिलकर एक महान बाबा को जन्म देते हैं? क्या बाबा होने के लिए और पूजे जाने के लिए जमीनों का लंबा – चौड़ा कारोबार होना चाहिए?
ये सब सवाल मुझसे एक बाबा ने पूछे हैं। बाबा अगर ‘बाबत्व’ पर सवाल पूछे, तो थोड़ा विचित्र लगता है। यह वैसा ही है, जैसे कोलगेट की गायब फाइलों पर लोग प्रधानमंत्री से रखवाली की उम्मीद करें। फिर भी, चूंकि बाबा, बाबा होते हैं और मुख्यमंत्रियों-प्रधानमंत्रियों से ऊपर होते हैं, इसलिए उनके किसी विचार पर आप सवाल नहीं कर सकते। मैंने उनसे पूछा, ‘आप बाबा क्यों हो गए?’
उन्होंने कहा, ‘मेरे पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था। जब खुद के लिए कुछ करने के काबिल न बन सका, तो सोचा दूसरों के लिए कुछ कर डालते हैं।’
‘जब आप इतने उदात्त भाव से दूसरों के लिए कुछ करने की बात कर रहे हैं, तब मुझसे यह क्यों पूछ रहे हैं कि संतत्व के लिए बाबागीरी का प्रतिशत कितना होना चाहिए? एक महान बाबा के लिए पुजने की अवस्था कब आती है, यह तो आपको मुझसे बेहतर पता होगा।’ मैंने फिर पूछा।
वे कहने लगे, ‘मैं बाबा हूं, यह मुझे लोग बताते हैं। पर संत होने का परमांनद हृदय में आ ही नहीं रहा है। मैं आपसे इसलिए जानना चाहता हूं कि आप थोड़े निरपेक्ष आदमी लगते हैं। मेरे पास कोई आश्रम नहीं है। चेलियां तो खैर छोड़िए, चेले भी मुश्किल से जुटते हैं। मुझे आप अपनी दृष्टि से बताइए कि आखिर मुझमें क्या कमी है? लोग मुझे लगभग बाबा मान सकते हैं, लेकिन पूरा बाबा या पूजनीय संत मनवाने में बड़ी मुश्किल पेश आ रही है।’
‘देखिए, मैं निरपेक्ष लगता हूं, इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं आपको पूजनीय बाबा बनने के गुर सुझा सकता हूं। इसके लिए आपको उन बाबाओं के पास जाना पड़ेगा, जो या तो जेल जा चुके हैं या जेल जाने की तैयारी में हैं या उनका आश्रम ही जेल मे तब्दील हो गया है। वे इस तत्व को जानते हैं।’
‘यही तो मुश्किल है। मैंने दो-तीन बार कोशिशें की कि बेहतर और सफल बाबा बनकर दिखाऊं। मगर नाकाम रहा। दो सेठ मिले, जो बेनामी माल मेरे संरक्षण में छोड़ना चाहते थे, मैं डर गया। एक सटोरिया मिला, जो सेठों के इंतजाम के साथ उनसे मिले माल का निवेश करने का प्लान भी लेकर आया था। एक देवी जी मिलीं, जो कहती थीं कि आपकी ड्रेस-मेकअप वगैरह इस तरह कर दूंगी कि आपके कदम जमीन पर पड़ते हुए ही न दिखें। एक लीडर मिला, जो दीक्षार्थियों के बदले में मुझे सरेआम घुमाना चाहता था। एक चालू वैद्य मिला, जिसने कहा, मैं एक शक्तिवर्धक चूरन तैयार कर दूंगा। इसे आपके नाम से बनाया जाएगा और आश्रम से ही धड़ाधड़ बिकेगा। कमाई में फिफ्टी-फिफ्टी होगा। मैं और डर गया। वह चूरन नहीं लकड़ी का बुरादा था।’
‘आप जब इतना जल्दी डर जाते हैं, तो अच्छे बाबा कैसे बन सकते हैं? आपने कहीं जमीन कब्जाई है कि नहीं?’ ‘मेरी खुद की कुटिया पिछली बारिश में टूट गई। बाप-दादों के छोटे से खेत में बनाकर रहता था। आधी जमीन पर चचेरे भाइयों ने एक बिल्डर के साथ कब्जा कर रखा है। इसी विषाद ने मुझे बाबा बनने के रास्ते पर डाल दिया।’
‘विषाद में जो बाबा बनते हैं, वे कभी सफल बाबा नहीं हो सकते। आनंद, परमानंद और आशा ही उनको राम से मिलाती है। वे नृत्य करते हैं, तालियां बजाते हैं, होली खेलते हैं, कृपा बरसाते हैं और कभी-कभी तो सिर्फ हाथ घुमाकर ही ब्रह्मांड का रहस्य भक्तों के पर्स में डाल देते हैं।’
‘मुझे नृत्य नहीं आता। कृपा बरसाने के लिए क्या करना होता है?’
‘यह तो आपकी प्रतिभा पर निर्भर करता है। दो समोसे खाने, चार गोलगप्पे खिलाने या दाढ़ी बनाने का समय बदलने मात्र से भी कृपा बरसाई जा सकती है।’
‘मुझमें यह प्रतिभा होती, तो मैं संत से भी ऊपर उठ जाता।’ ‘आप अंधेरे कमरे में शिष्या के साथ बैठ सकते हैं?’ ‘हद हो गई। मुझे खुद अंधेरे से भारी डर लगता है।’
जैसे ही उसने यह कहा, मुझे परसाई का टॉर्च बेचने वाला याद आ गया। वह अंधेरे का डर दिखाकर रोशनी का सामान बेचने वाला बाबा बने या गली-गली में टॉर्च बेचे? बड़ी मुसीबत थी। वह टॉर्च बेचना चाहता था पर खुद अंधेरे से डर रहा था।
मैंने उसे सलाह दी है कि वह एक हफ्ते के लिए एकांत साधना में चला जाए, तब तक कोई महान बाबा जेल हो आएगा। अब वह एकांत ढूंढ रहा है और मैं जेल से महान बाबा की खबर आने का इंतजार कर रहा हूं।
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