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खोई हुई जमीन के ब्रोकर

पता चला कि कांग्रेस ने अपनी जमीन खो दी। कुछ विश्लेषक कह रहे थे, हमने पहले ही कहा था कि जमीन खिसक रही है पर कोई सुनने को तैयार नहीं था। कुछ सलाहकार कह रहे हैं कि हमारी सलाह पर अमल के लिए किसी के पास वक्त ही नहीं था। कुछ सयाने प्रस्ताव दे रहे हैं कि खोई हुई जमीन को दुबारा पाने के लिए जमीन के कागजात यदि उनके हवाले कर दिए जाएं, तो कुछ बात बन सकती है।

जमीन बड़ी जरूरी है। कवि के लिए यथार्थ की जमीन, क्रांतिकारी के लिए मूल्यों की जमीन, प्रॉपर्टी ब्रोकर के लिए बेचने की जमीन।

जमीन पर पकड़ और बड़ी चीज होती है। कुछ लोग मानते हैं कि जड़ें गहरी हों, तो जमीन पर कब्जा बनाए रखने में आसानी होती है। कांग्रेस गमले लगाने में लगी रही और जड़ें, गमले से बाहर जमीन के नीचे पहुंची ही नहीं। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि कांग्रेस की जमीन इतनी लंबी-चौड़ी रही है कि उसका खोना लगभग असंभव है। बरगद, आम, चंपा, चमेली, आदमी, शैतान, अनाज, बिजूके-सब लग जाएं तो भी न भरे। गमले तो यूं ही पड़े रहते हैं। आर्किड तो हवा में झूलती जड़ों से ही खा-पी लेते हैं।

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मैंने जनपथ की तरफ पीठ करके खड़े ब्रोकर से पूछा, ‘अब तुम्हारे धंधे का रुख किधर होगा? तुम्हारा तो एरिया यही था। ‘दस बाई दस’ के ऑफिस से तुमने देश नाप दिया। पर अब तुम कह रहे हो कि जमीन खो गई है।’

‘मैंने धंधा बढ़ाने का फैसला किया है। मैं खोई हुई जमीन के धंधे में उतर रहा हूं। इसीलिए कहता हूं, जमीन खो गई है। यह मेरे विज्ञापन की पंचलाइन है।’ ‘कमाल है। जमीन के धंधे वाला आदमी खोई हुई जमीन से दलाली कैसे कमा सकता है?’ ‘एक वैज्ञानिक ने कहा, ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती, सिर्फ अपना रूप बदलती है। मेरा कहना है, जमीन कभी नहीं खोती, वह सिर्फ बोर्ड बदलती है।’ ‘मतलब तुम्हारा कहना है कि जमीन वहीं है, पर खो गई है।’ ‘नहीं, मैं कहता हूं, जमीन खोई है इसका मतलब वहीं कहीं होती थी।’ ‘तुम काफी दार्शनिक किस्म के ब्रोकर लगते हो। तुम्हारी बात मान भी लें, तो खोई हुई जमीन के अतीत की दलाली कैसे खाओगे? तुम्हें पहले आभासी ही सही, जमीन तो दिखानी पड़ेगी।’

‘मैं खोई हुई जमीन के भविष्य पर कमीशन का प्रस्ताव रखता हूं।’ ‘खोई हुई जमीन का अस्तित्व अनिश्चित है। क्योंकि मिली, मिली, नहीं मिली। कार्यकारिणी में यह प्रस्ताव नहीं चलेगा।’ ‘मैं भी दावे से कहता हूं, जब तक लाभ न हो, दलाली का दशांश भी मत दीजिए। मैं आपको यहां खोई जमीन के बदले मंगल ग्रह पर भी जमीन दे सकता हूं और चांद पर भी। मेरा मैनिफेस्टो-कम-ब्रोशर देख लीजिए।’

‘पर कांग्रेस को सरकार मंगल या चांद पर थोड़े ही बनानी है।’ ‘जिनकी जमीन खोती है, वे दो तरह के लोग होते हैं। एक वे जो ‘जर-जोरू-जमीन’ के मुहावरे से संचालित होते हैं। दूसरे वे जो अपना मुहावरा कोश बनाने के बाद शेष को संचालित करने के लिए अवतार लेते हैं। मेरा दृढ़ विश्वास है कि दूसरी किस्म के लोगों की खोई जमीन की वापसी पर पूरा कारोबार खड़ा हो सकता है। चूंकि इसमें पुश्तैनी जमीन हथियाए जाने के मानवाधिकार का मामला भी शामिल है, इसलिए इस बात की प्रबल संभावनाएं हैं कि अब नया मूवमेंट शुरू होगा। इस मूवमेंट से खोई जमीन के प्लाटों की कीमत में भारी इजाफा होगा। मेरा कमीशन पहले से कहीं ज्यादा होगा।’

‘यानी तुम खोई जमीन से मंगल और चांद का धंधा जोड़कर मूवमेंट खड़ा करना चाहते हो?’ ‘नहीं, मैं तो सिर्फ नए मुनाफे का नया मूवमेंट खड़ा करना चाहता हूं।’ ब्रोकर के पास बोलने-बताने को बहुत कुछ था। खसरे, नक्शे, नकल, रजिस्ट्री, स्टाम्प पेपर, नोटरी, पावर ऑफ अटार्नी – जो मांगो सब! जमीन भी थी, बस खोई हुई। दुष्यंत कुमार के वक्त कुछ इस तरह कहा गया था – ‘तुम्हारे पैरों के नीचे जमीन नहीं, कमाल है फिर भी तुम्हें यकीन नहीं।’ इस वक्त मामला उससे आगे बढ़ गया है। यकीन तो क्या, उन्हें पूरे तौर पर मालूम है कि जमीन खो गई है, पर जमीन के धंधे में उनके उत्कृष्ट अनुभव के चलते बाजार के धाकड़ ब्रोकरों को पूरा भरोसा है कि वे खोई हुई जमीन पर भी धंधा उगा लेंगे।

ब्रोकर तो मुतमईन हैं पर जनता का क्या होगा? जनता चिंता न करे ब्रोकरों की ओर से उसे गुड़गांव-नोएडा मॉडल के अध्ययन की सलाह दी गई है।

और अंत में – एक ठीक-ठाक किस्म की कब्र हमेशा घर के पिछवाड़े बनी रहनी चाहिए, जिसमें आप वक्त जरूरत अपने दोस्तों की गलतियां दफना सकें। �- हेनरी वार्ड बीचर का विचार ।

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