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    तुम डबरे हम सागर
    Yashwant Vyas Archive
    • Apr 6, 2015
    • 4 min

    तुम डबरे हम सागर

    तुलना करना साहस का काम है। प्रेम में अपना सबसे सुंदर, विलक्षण और अद्वितीय ही लगता है। वह अद्वितीय तो खैर होता ही है क्योंकि एक जैसा एक ही...
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    उम्मीद की फ्रेंचाइजी नहीं बिकती
    Yashwant Vyas Archive
    • Mar 28, 2015
    • 4 min

    उम्मीद की फ्रेंचाइजी नहीं बिकती

    हंसने वाले कौन लोग हैं? लंबे-लंबे हाथ करके और गर्दन घुमाकर ज्ञान देने वाले कौन लोग हैं? मंद-मंद मुस्काते और ‘स्टिंग के बारे में स्टिंग...
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    लोकतंत्र की घर वापसी
    Yashwant Vyas Archive
    • Feb 11, 2015
    • 4 min

    लोकतंत्र की घर वापसी

    मूर्ति की आंख के आंसू, बाग की उम्मीद में हैं। उन्हें शीशियों में भरकर व्यापार करना वैसा ही होगा जैसे चांद पर बैठी काल्पनिक बुढ़िया के...
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    सुविधा का सेंसर, इस्तीफे की लीला
    Yashwant Vyas Archive
    • Jan 17, 2015
    • 5 min

    सुविधा का सेंसर, इस्तीफे की लीला

    राजनीति में अंगुलियां डुबोकर उसकी चाशनी को मक्खियों से बचाना अलग कला की मांग करता है। यह कला बिरलों से ही सधती है। लीला सैमसन ने सेंसर...
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    बाजार ध्वस्त पीके मस्त
    Yashwant Vyas Archive
    • Jan 4, 2015
    • 4 min

    बाजार ध्वस्त पीके मस्त

    करोड़ों का दांव खेल रही लोकप्रिय फिल्मों का कारोबार मार्क्सवाद, लोहियावाद या हिंदूवाद की सेवा में नहीं चलता।यह इंडस्ट्री जोखिमों को काफी...
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    एक भूमिका, कुछ अफसाने
    Yashwant Vyas Archive
    • Dec 7, 2014
    • 3 min

    एक भूमिका, कुछ अफसाने

    मित्रो, पिछले दिनों एक किताब की भूमिका लिखने का आग्रह मिला। मुझे यह कथा याद आई। मैं आपको फिर सुनाता हूं। मैंने भी सुनी थी। मोईशे नाम का...
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    महापुरुषों का मार्केट
    Yashwant Vyas Archive
    • Nov 16, 2014
    • 3 min

    महापुरुषों का मार्केट

    मूर्ति पर पड़ी बीट साफ करते हुए उस नौजवान ने बताया कि जिस ठेका कंपनी के जरिये वह सफाई के काम में लगा है, उसने उसका प्रॉविडेंट फंड तीन साल...
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    सौ करोड़ के शहंशाह, भगवान और एक अदद रेडियो
    Yashwant Vyas Archive
    • Nov 8, 2014
    • 4 min

    सौ करोड़ के शहंशाह, भगवान और एक अदद रेडियो

    पिछले हफ्ते तीन अद्भुत घटनाएं एक साथ घटीं। पंचायतों ने इन आदिवासियों को इस अद्भुत यंत्र की प्राप्ति के लिए गांवों से रवाना किया। वे घंटों...
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    लीडर ऐसा चाहिए
    Yashwant Vyas Archive
    • Nov 2, 2014
    • 3 min

    लीडर ऐसा चाहिए

    कवि मार्गदर्शक मंडलों के दौर में पार्टियों से परेशान हो गया है। देश विचित्र समस्याओं से गुजर रहा है। महाराष्ट्र में सब कुछ जानते हुए भी...
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    सत्यार्थी का हिंदू, मलाला का मुसलमान
    Yashwant Vyas Archive
    • Oct 12, 2014
    • 3 min

    सत्यार्थी का हिंदू, मलाला का मुसलमान

    अच्छे कामों की भी कोई जात होती है? बुरे कामों का संप्रदाय-धर्म होता है कि नहीं, यह तो वे बताते रहते हैं, जो धार्मिक आतंकवाद का वैश्विक...
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    हिंदी के मुहल्ले में कवि और आदमी
    Yashwant Vyas Archive
    • Sep 13, 2014
    • 4 min

    हिंदी के मुहल्ले में कवि और आदमी

    हिंदी के कवि ने मुहल्ले के नल पर पानी भरती लड़कियों पर एक कविता लिखी। फिर उसे छपवाकर मंडली में काफी वाहवाही पाई। उसकी अब इच्छा थी कि नल...
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    मेरी तस्वीर लेकर तुम क्या करोगे?
    Yashwant Vyas Archive
    • Aug 23, 2014
    • 3 min

    मेरी तस्वीर लेकर तुम क्या करोगे?

    अभी जब सुलावेसी-इंडोनेशिया के एक बंदर के साथ यह गुजरी तो बंदरों के बीच उसकी चाहे जो प्रतिक्रिया रही हो, आदमियों की नीयत जरा और खुल गई।...
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    फुल पेज लज्जा
    Yashwant Vyas Archive
    • Aug 9, 2014
    • 3 min

    फुल पेज लज्जा

    ‘यह तो सबसे खराब समय है। सब डरे हुए हैं। इतना डरा हुआ आदमी मैंने पहले कभी नहीं देखा। सबकी कमान हाथ में है। कोई कुछ कर ही नहीं पा रहा है।...
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    घीसू एक किताब लिखना चाहता है
    Yashwant Vyas Archive
    • Aug 2, 2014
    • 3 min

    घीसू एक किताब लिखना चाहता है

    लेकिन कल के बाद घीसू अचानक बदल गया। उसने तय किया है कि वह अब किताब लिखेगा। ‘तुम अपनी किताब में क्या लिखोगे? न तुम सोनिया गांधी के...
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    हाफिज सईद बड़े काम की चीज है
    Yashwant Vyas Archive
    • Jul 19, 2014
    • 4 min

    हाफिज सईद बड़े काम की चीज है

    एक पान वाले मित्र हैं। उनके यहां कई तस्वीरें लटकी हुई हैं। कोई मशहूर आदमी उधर से गुजरा नहीं कि तस्वीर खिंची और दुकान पर टंग गई। फलां...
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    और भी गम हैं जमाने में एक कॉलम के सिवा
    Yashwant Vyas Archive
    • Jul 12, 2014
    • 3 min

    और भी गम हैं जमाने में एक कॉलम के सिवा

    हर रविवार जब ‘नमस्कार’ के लिए लिखने बैठता हूं तो लगता है, आज लिखना मुश्किल होगा। जो वजहें होती हैं, पहली क्या लिखें? दूसरी – क्या न...
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    बजट से पहले हलुआ
    Yashwant Vyas Archive
    • Jul 5, 2014
    • 4 min

    बजट से पहले हलुआ

    मिठास की मारी मुस्कराहट उस मुस्कराहट से अलग होती है, जो मिठास से जिलाए जाने पर आती है। तस्वीर के कैप्शन से पता चलता है कि यह परंपरा का...
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    अच्छे दिन एक्सप्रेस में लटका हुआ कवि
    Yashwant Vyas Archive
    • Jun 21, 2014
    • 3 min

    अच्छे दिन एक्सप्रेस में लटका हुआ कवि

    जनपथ से अच्छे दिनों को भोगकर कवि राजपथ होता हुआ उस स्टेशन की तरफ निकल गया, जिधर से उम्मीद थी कि अब नए वाले अच्छे दिनों की सुपरफास्ट...
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    विकल्प की लेबोरेटरी
    Yashwant Vyas Archive
    • Jun 8, 2014
    • 3 min

    विकल्प की लेबोरेटरी

    वे हंस रहे थे। हंस-हंसकर तर्क फेंक रहे थे। बीच में गंभीर होकर लोहिया से लेकर अन्ना हजारे तक पर मुहावरे गढ़ने बैठ जाते थे। उन्हें गांधी,...
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    जाओ तो इस तरह कि जीवनी में न जाओ!
    Yashwant Vyas Archive
    • May 31, 2014
    • 4 min

    जाओ तो इस तरह कि जीवनी में न जाओ!

    नरेंद्र मोदी ने एक और गलत काम किया है। उन्होंने अपने जिम्मेदार प्रेमियों को कहा है कि उनकी जीवनियां कोर्स में पढ़वाने का इरादा छोड़...
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