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उस किताब में एक रॉयल्टी रहती थी
पांच महीने में पांच लाख कॉपी हों और बारह रिप्रिंट, उसके बावजूद सारा मुनाफा एक ही जेब में कैसे जा सकता है? ऊपर से इसकी क्या गारंटी है कि रिप्रिंट और संख्या सही-सही जाहिर की जा रही है? एक प्रकाशक हजार टाइटल छापता है। हर एक ‘प्रोजेक्ट’ दरअसल बाजार में उसका व्यापारिक निवेश होता है, […]
Yashwant Vyas
Oct 58 min read


छावा के वक्त में पूरब और पश्चिम
अब जब नए-नए भारत कुमार बन रहे हैं और अस्सी के दशक में छपे शिवाजी सावंत के उपन्यास ‘छावा’ की फिल्मी कामयाबी पर 2025 में रुदन और हर्ष एक साथ आसमान छू रहे हैं, मनोज कुमार के उस चित्र को देखना कितना सुकून देता है, जिसमें वे शहीद भगतसिंह की मां विद्यावती जी के साथ मुस्करा […]
Yashwant Vyas
Apr 55 min read


फिर एक सुंदर सी कथा कहें
जो कहानी हम बनाते हैं, वही हमें बनाती है। इसके जरिये ही हम दूसरे के जीवन में प्रवेश करते हैं, उसके चरित्र में उतर सकते हैं, उसके अनुभवों को जीकर वापस अपने में लौट सकते हैं। इसीलिए कथाएं हमारे विश्वास भी गढ़ती हैं। हमारी संवेदनाओं के नक्शे उनसे धड़कते हैं। हर साल हम कुछ कथाएं जीते […]
Yashwant Vyas
Dec 29, 20244 min read


सीजन के सौदागर आते रहेंगे
तितलियों के प्रेम में पड़कर उनके पीछे भागना एक बात है और उन्हें मारकर अपनी किताब के पन्नों में रख लेना दूसरी। मरी हुई तितलियां अपने रंगों से कभी नहीं खेलतीं, उनके कण जरूर जिंदगी के पन्नों पर चिपके पड़े रह जाते हैं। ये कण अब खूब चमक रहे हैं। सादगी से भरा आनंद जटिलता की […]
Yashwant Vyas
Dec 31, 20236 min read


आदिपुरुष विवाद: सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा
हर आदमी के अपने राम, अपने रावण हो सकते हैं, पर रामायण की मूल कथा में ‘अपना मजा’ बेचने की कोशिश कला का भिन्न विचार है। एक साथ श्रद्धा और मजा बेचना आखिर टेढ़ा काम तो है ही। फिल्में पॉपुलर कल्चर का हिस्सा हैं और अमूमन यह उम्मीद की जाती है कि वे […]
Yashwant Vyas
Jun 21, 20234 min read
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