फिर एक सुंदर सी कथा कहें
- Yashwant Vyas
- Dec 29, 2024
- 4 min read
जो कहानी हम बनाते हैं, वही हमें बनाती है। इसके जरिये ही हम दूसरे के जीवन में प्रवेश करते हैं, उसके चरित्र में उतर सकते हैं, उसके अनुभवों को जीकर वापस अपने में लौट सकते हैं। इसीलिए कथाएं हमारे विश्वास भी गढ़ती हैं। हमारी संवेदनाओं के नक्शे उनसे धड़कते हैं। हर साल हम कुछ कथाएं जीते हैं, फिर नए साल के लिए नई कथाओं के घटने का इंतजार करने लगते हैं।

जान कथा में उतनी नहीं होती, जितनी उसे सुनाने की अदा में होती है। सच को ज्यों का त्यों रख दिया जाए, तो वह बड़ा नीरस और गैरभरोसेमंद लग सकता है, लेकिन अगर साथ कथा खड़ी हो जाए, तो विश्वसनीयता का बल उसे स्मृतियों में खोद देता है। कहानियां हमारे साथ चलती हैं और विचारों के विभिन्न आदर्श प्रतिरूपों को रचती हैं। वे सबक भी दे देती हैं। वे यों ही हमारी जिंदगी में मौजूद भी रह सकती हैं, अंधेरों से परिचित करा सकती हैं, उजाले की उम्मीद जगा सकती हैं। अपनी धारणाओं से ऊपर उठने के लिए वे हमें चुनौती देती हैं, रंजन करती हैं, समृद्ध करती हैं और कभी-कभी रुलाती-हंसाती भी हैं।
कथा नहीं है, तो कथा की कोई कथा नहीं है। कथा के जरिये हम दूसरे के जीवन में प्रवेश करते हैं, उसके चरित्र में उतर सकते हैं, उसके अनुभवों को जीकर वापस अपने में लौट सकते हैं। इसीलिए कथाएं हमारे विश्वास भी गढ़ती हैं। हमारी संवेदनाओं के नक्शे उनसे धड़कते हैं।
हर साल हम कुछ कथाएं जीते हैं, फिर नए साल के लिए नई कथाओं के घटने का इंतजार करने लगते हैं। इस बार जब ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने ब्रेन रॉट (Brain Rot) को 2024 का लफ्ज नंबर-एक चुना तो सहसा हेनरी डेविड थोरो याद आ गए। ब्रेन रॉट का सीधे-सीधे मतलब ये है कि ऑनलाइन दुकानों से ज्ञान की जो अकूत सप्लाई हुई है, उसने हमारे दिमाग का स्तर गिराकर रख दिया है। हमारा मनोसंसार चलताऊ ज्ञान-मंडलियों का गोदाम बनकर रह गया है। 2023 से 2024 तक आते-आते इस शब्द का चलन 230 प्रतिशत से ऊपर पहुंच गया। यानी सब जानते हैं कि क्या जानना है, उस पर बातें भी करते हैं, पर फिर भी जानने में न जानना अपनी धमक जमाए बैठा है। इस हाल का पहला ऐलान 1854 में हेनरी डेविड थोरो ने किया था।
आपको याद होगा कि विद्रोही स्वभाव के थोरो एक दिन सब कुछ छोड़कर जंगल में चले गए थे और उन्होंने वाल्डेन सरोवर के पास अपनी कुटिया बनाई। ढाई वर्ष तक प्रकृति के साथ रहते हुए ही उन्होंने ‘वाल्डेन’ लिखी। उन्होंने पाया, पंछी खुद अपने नीड़ का निर्माण करता है। इसमें जो औचित्य है, वही कुछ अंशों में मानव का घर अपने आप बनाने में भी है। यदि लोग अपना घर अपने हाथों बनाने लगें और अपने तथा परिवार की जरूरतों के लिए सादगी और ईमानदारी से अपने हाथों खाने की चीजें पैदा करने लगें, तो सृष्टि में सब वैसे विकसित हो जाएंगे जैसे पंछी गाते हैं, पत्तियां हरहराती हैं। जबकि, हुआ यह है कि हम ‘बसेरा’ नहीं करते, ‘बस’जाते हैं। हम कुदरत का स्वर्ग भूल गए हैं। हमने ‘इस’ दुनिया के लिए पारिवारिक कोठियां बना लीं और ‘उस’ दुनिया के लिए पारिवारिक मकबरे!
क्या हमारी कहानियां ‘ब्रेन रॉट’ से आक्रांत हैं। जवाब एक दूसरी डिक्शनरी देती है। उसने साल का सबसे प्रचलित शब्द चुना है- ब्रैट (Brat), तीसरी ने चुना है डिम्युअर (Demure)। ‘ब्रैट’ अपनी उद्दाम इच्छाओं का बेपरवाह ऐलान है तो ‘डिम्युअर’ शालीनता का विनम्र आग्रह। दोनों शब्दों के इरादे एक-दूसरे से कतई मेल नहीं खाते।
सिंगर चार्ली एक्स सीएक्स ने ‘ब्रैट’ चलाया और इन्फ्लुएन्सर जूल्स लेब्रॉन की बदौलत डिजिटल मीडिया में 1200 प्रतिशत से ज्यादा चला ‘डिम्युअर’। जहां तक एक और डिक्शनरी कैम्बि्रज का सवाल है, उसने ‘मेनिफेस्ट’ (Manifest) को चुना है, जिसका चालू मतलब कुछ यूं ले लीजिए कि जो आप पाना चाहते हैं, उसे पाने की कल्पना इस भरोसे के साथ की जाए कि वह मिलेगा ही, तो मिलने की संभावना ऊंची हो जाएगी।
अब जरा अपनी कहानी को गौर से देखिए। एक कहता है उद्दाम इच्छाएं लेकर बेपरवाह जियो, दूसरा कहता है शालीनता और विनम्रता अपनाओ, तीसरा कहता है- बस सोच लो सब घट जाएगा। इन सबसे पहले कोई कह चुका है- हमारे दिमाग का हाल कोई अच्छा नहीं है।
तो आपकी कहानी कैसे बनेगी? इस तरह तो कथा में सिर्फ एक बेचैन ‘कूद’ होगी। दरअसल एक होता है डोपामाइन रिवार्ड सिस्टम! खुशी होने पर डोपामाइन हार्मोन का स्राव होता है। लाइक, शेयर वगैरह इसी की मेहरबानी से ऑनलाइन मीडिया में घटित होते हैं, क्योंकि आप एक छोटी सी दिल बहलाऊ स्टोरी से गुजरते हैं, वह इतनी जल्दी खत्म होती है कि आपकी तलब तो खत्म ही नहीं होती। नतीजा, आप उसे लाइक और शेयर करते हैं, फिर नई तलाश करते हैं। यह तलाश खुशी और ऊर्जा का छींटा देते-देते आपको आदी बनाने लगती है। अंतत: सकारात्मकता की तलाश भी एक नशे की तलाश में बदल जाती है। ‘पॉजिटिव थिंकिंग’, ‘स्यूडो साइंस’ का ठप्पा लेकर आपकी अंगुलियों में उतर जाती है। यानी विज्ञान जैसा लगने वाला विज्ञान, आपके डोपामाइन का अज्ञात सौदागर हो जाता है।
आपकी बनने वाली कहानी, इस बनी-बनाई कहानी की छाया बन जाती है।
सच्ची कहानी की खासियत ये है कि वह खुद को नियंत्रण में रखने के गुर देती है। जो कुछ हमें मिला है, उसमें सातत्य और नियमन खोजने के साथ आसपास घट रही बेतरतीब घटनाओं में से मायने चुनने की ताकत देती है। कथा का सच्चा इरादा ये है कि हम कैसे सोचें, कैसे महसूस करें, दूसरों के साथ कैसे समानुभूति रखें और यथार्थ जीवन को कैसे सुंदर बनाएं। कहानियां दुनिया को सार्थक बनाने की कुंजी हैं। ये कुंजी उन दरवाजों को खोलने से पहले आपको तैयार करती है, जिन दरवाजों के पीछे सुख, दुख, सुरक्षा और खतरे छुपे हैं।
दरअसल, जो कहानी हम बनाते हैं, वही हमें बनाती है। ऑक्टेविया बटलर कहते हैं, मैं खुद को रचने के लिए लिखता हूं।
इन दिनों जब खलनायक और नायक एक-दूसरे की भूमिकाओं की अदला-बदली कर रहे हैं और यू-ट्यूब का कंटेंट अगर हीरो है, तो उसका थंबनेल विलेन है तब आपको सबसे सुंदर कहानी लिखने की चुनौती लेनी चाहिए।
जब हर खलनायक चाहता है कि उसकी कथा कही जाए, तो नायक के बगैर कथा तो पूरी होगी नहीं!
ये कहानी, इस साल कहीं और से नहीं, आपकी खिड़की से शुरू होगी, जो रोज खुलती है, जिससे आपने सूरज नहीं देखा, बस मोबाइल से सूरज की तस्वीर उतारी है।
सूरज देखिए! कथा बन जाएगी, एकदम धड़कती हुई – उस ऊष्मा के साथ जो भीतर तक जीवन देती है।
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