देश में बड़ी गलतफहमी पैदा हो गई है। लगभग हर दूसरा कह रहा है कि तीसरे का एक गुप्त एजेंडा है। उधर तीसरा बार-बार जेब दिखा-दिखाकर कह रहा है कि उसका जो कुछ है, वो राष्ट्रीय एजेंडा ही है।
गलतफहमी इस बात को लेकर नहीं है कि किसका राष्ट्रीय एजेंडा और गुप्त एजेंडा है, गलतफहमी इसे लेकर है कि पार्टी का या सरकार का कोई एजेंडा होता भी है?
कुछ लोग समझते हैं कि पर्टियां टेलरों से मुद्दा आधारित लंबे कुर्ते सिलवाकर चुनाव में खड़ी होती हैं। इन कुर्तों में जेब नहीं होती। जब कभी जनता को शंका होती है, पार्टियां कुर्तें के जेब विहीन होने की बात पर जोर देते हुए कह देती हैं कि सिर्फ कुर्ता ही है, जो उनका एजेंडा है।
बाद में इस एजेंडे में जेबें निकल आती हैं। आमतौर पर ये दाएं या बाएं हो सकती हैं, लेकिन कुछ दिल वाले लीडर अपनी पार्टी के लिए सीने पर भी दो जेबें बनवा लेते हैं। एक एजेंडे में चार जेबें काफी होती हैं। इनमें मौके बेमौके सेक्युलरिज्म से लेकर आर्थिक नीति तक खोंसी जा सकती है।
कुछ पार्टियां उस वक्त मुश्किल में पड़ जाती हैं जब जरूरत से ज्यादा माल जेबों में खोंस लेती हैं। जेब भारी होकर फट जाती है। एजेंडे में से नंगई झांकने लगती है और बाद में जो कुछ होता है, वह या तो जेब के सिर जाता है या उस कपड़ा मिल पर जिसके कपड़े से कुर्ता बना था।
भाजपा ने अपने एजेंडे में जो कुछ किया हो, सबका मिलाकर एक लंबा-चौड़ा कुर्ता पहना और कह दिया कि भई ये हमारा नेशनल एजेंडा है। जो भी जेबें दिखाई दे रही हैं, वे एकदम वही हैं, जो कांग्रेस या कम्युनिस्टों की भी हो सकती थीं। बड़ी ही अद्भुत किस्म की कारीगरी है। इन्हीं जेबों के सहारे जिंदगी चलेगी। किसी ऐनक की डंडी भी किसी जेब से दिखाई दे तो उसे नेशनल एजेंडे का ही हिस्सा माना जाए।
मगर, यारों को यकीन नहीं है। एक मोर्चे का कहना है कि इस कुर्ते में एक चोर जेब है। मुझे हैरत है कि यह नहीं कहा जा रहा कि भीतर एक चोर कुर्ता है, जिसमें चार चोर जेबें हैं। आप सोचते हैं, एजेंडे को सिर्फ एक चोर जेब के सहारे चलाया जा सकता है?
दरअसल, हर पार्टी का एजेंडा एक पूरी की पूरी चोर जेब होता है। एक दफे रामाराव ने कहा चावल के भाव दो रुपए कर दूंगा। उधर गुजरात के नेताओं को पता लगा तो चिमन जनता पार्टी नुमा किसी पार्टी ने कह दिया गेहूं एक रुपए किलो कर देंगे। कांग्रेस को गुस्सा आया। उसने तड़ से कह दिया, हम उसके भी आधे कर देंगे।
अगर एजेंडे से कुछ बनता-बिगड़ता हो तो हमारी पालनहार पार्टियां चांद पर बनने वाली पार्टियों में फ्लैट फ्री कर दें। कब तो चांद पर जाएंगे, कब कॉलोनी बनेगी और कब फ्लैट की छत डलेगी? आप यह पूछेंगे तो जवाब मिलेगा, यह हमारा अपना एजेंडा है। अगर स्पष्ट बहुमत मिला तो फ्लैट दिलवा देंगे, वर्ना कॉमन नेशनल एजेंडा बनेगा। गठबंधन के नेशनल एजेंडे में गटरविहीन हुडको कॉलोनी का प्रावधान हो तो हम क्या करें?
हर कोई चाहता है कि उसके गुप्त एजेंडे पूरे करने के लिए खुले एजेंडे से उल्लू बनाने का मौका मिल जाए। चोर जेबों का जमाना है। ज्यादा सयाने जूते के तलों में भी माल छुपा कर रख लेते हैं। बेहतर यही है कि एजेंडे की बात छोड़कर चोर जेबों के नए फैशन पर बात की जाए।
यूपीए और एनडीए को अच्छे दर्जी की तलाश शुरू कर देनी चाहिए।
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