top of page
Search

गुनाह इस अर्थशास्त्र की किक है

Yashwant Vyas



वह क्या बात है, जो एक सेलिब्रिटी को इतनी दोहरी तार्किक प्रतिरक्षा देने वाला उत्सुक तंत्र तैयार कर रही है? उफनाऊ पूंजी के स्मार्ट मैन्युअल में इसका उत्तर छिपा है।किसी भी मानवीय तंत्र में सुबूतों, सजाओं, सच्चाइयों का खेल नहीं, व्यक्तिगत नैतिकताओं का वास्तविक मोल आंकना काम्य होता है। किंतु, मनोरंजन के शातिर अर्थशास्त्र ने दुआओं के बॉक्स ऑफिस से उस प्रक्रिया को विफल कर दिया है।

You’lसलमान खान को सजा दिए जाने पर लगभग वैसा ही आंसू और नमी का कारोबार शुरू हो गया है, जैसा संजय दत्त के खलनायक साबित होने पर शुरू हुआ था। अभी यह मामला ‘हिट ऐंड रन’ वाला है। हिरण के शिकार का हिसाब बाकी है। दिलचस्प है कि राजस्थान के जंगलों में हिरण शिकार मामले में जब केस दर्ज हुआ था, तो जो वनमंत्री थीं, वे शीघ्र ही फिल्मों में सलमान की मम्मी बनकर दिखाई दीं और उनकी बेटी फिल्मी गायिका। फिर सरकार बदली। नई आई। वह भी गई, फिर पुरानी आई। हर परिवर्तन के साथ नए-नए रूप दिखे। सबूतों के नष्ट किए जाने से लेकर बरसों पुराने गायब गवाह के यकायक प्रकट होने और मुकरने के किस्से आम हुए। अभी वह केस चल रहा है और बाजार में अनूठी दलीलों, तारीखों, मनमोहक छायाचित्रों के दौर को उत्कंठा की मुहर से चलाया जा रहा है। संजय दत्त की जेल यात्रा तो महान संतत्व की ज्वैलरी का विज्ञापन बन गई है।

एक पूरा हिस्सा है, जिसका काम यह साबित करना रहा है कि सलमान खान जैसे लोग ‘हातिम ताई’ हैं या संजय दत्त जैसे अभिजन, मासूमियत के चलते-फिरते स्मारक हैं। दुर्घटना, मृत्यु, शिकार, बंदूक आदि-इत्यादि के मामले महज नादानियां हैं। ये लोग कहते हैं कि इन पर शोर करना उन लोगों का कृत्य है, जो सेलिब्रिटी की पिटाई होते देख आत्मसुख पाते हैं।

नैतिक प्रश्नों के दार्शनिक उत्तर देने में प्रवीण ऐसे तर्कवीर समीक्षक वक्त-जरूरत कानूनी जिरह के नागरिक सिद्धांत भी फटकारते हुए दिख जाते हैं। मजेदार बात यह है कि शाहरुख खान वानखेड़े स्टेडियम के बाहर अपना अहंकार प्रदर्शित करें या घर के बाहर अवैध रैंप बनवाएं, दोनों में से एक भी (अहंकार या रैंप) टूटे, तो इन्हें सहज मानवीय मार्मिकता की कविताएं सूझने लगती हैं।

वह क्या बात है, जो एक सेलिब्रिटी को इतनी दोहरी तार्किक प्रतिरक्षा देने वाला उत्सुक तंत्र तैयार कर रही है? वह कौन-सी वजह है, जो एक अपराध को कहीं पर न्यून दिखाने तथा परिस्थितिवश उसे यदि स्वीकार कर ही लिया, तो ‘वाह-वाह’ बरसाने का वातावरण रचने लगी है? सट्टेबाजी, अकूत धन, अथाह ग्लैमर के संयुक्त आयोजन से स्वयं को नई नैतिक रेखा के ऊपर खड़ा करने वाला क्रिकेट भी वैसा ही व्यवहार करता है, जैसा कोयला-जमीन-फोन-शराब की कारोबारी कलाबाजियों पर जीता कॉरपोरेट नायक।

दरअसल उफनाऊ पूंजी के स्मार्ट मैन्युअल में इसका उत्तर छिपा है। यह मैन्युअल, गरीबी को भी उपयोगी मॉडल बनाकर उसे अपनी संवेदनशीलता के विज्ञापन में उपयोग करने की तकनीक बताता है। झूठ बोलना और अपने ड्राइवर से बुलवाना भी ‘बीइंग ह्यूमन’ (मानवीय) होना है। आप सारे धर्मों के त्योहार मनाते हैं, बीमारों को फल बांटते हैं या श्मशान में पेड़ लगाते हैं, तो उससे आपकी बैलेंस शीट की बेईमानियों का निर्मलीकरण होता है। जो आपकी इस निर्मलता पर प्रश्न उठाता है, वह आपसे ‘जलता’ है। उफनाऊ पूंजी का स्मार्ट मैन्युअल सिखाता है कि इस तथाकथित ईर्ष्या को, सेलिब्रिटी अपनी ऊर्जा में बदले और ऐसा जन-वातावरण निर्मित करे कि सहानुभूति का उत्पादन आरंभ हो जाए।

ऐसी जन छवि निर्मित करने के लिए पूरा तंत्र होता है। इसमें योजनापूर्वक खूबियों और खामियों के बीच अंतर समाप्त कर दिया जाता है। सामाजिक जवाबदेही तथा अर्थशास्त्र के कर्तव्यों का घालमेल बनाया जाता है। इसी का परिणाम होता है कि व्यक्तिगत नैतिकता से हीन चेहरे भी सार्वजनिक जीवन में भव्य छवि के मालिक होते हैं। वे ही सार्वजनिक नैतिकता के ब्रांड एंबेसडर भी बन जाते हैं।

मान लीजिए सलमान, संजय आदि के विरुद्ध कानूनी सुबूत पूरे नहीं होते, तो क्या होता? क्या सिर्फ कानूनी सुबूतों से सार्वजनिक नैतिकता के ब्रांड एंबेसडर की सामाजिक जवाबदेही पूरी हो जाती है? इन सवालों का जवाब देने वाले सत्तर के दशक के एक नायक ने कहा था, जिस सिगरेट को मेरे पीने से सब पीने लगेंगे, उस सिगरेट का विज्ञापन मेरे लिए हराम है, क्योंकि वे मेरे पहने कपड़े, मेरे बनाए बाल और मेरी चली चाल को भी आदर्श समझते हैं। जाहिर है, अभी यह जवाब ‘कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी’ और ‘हम तो सिर्फ मनोरंजन करने वाले हैं’ का उद्घोष करने वाले छवि-सौदागरों को निहायत बेवकूफाना लगेगा। लेकिन, वे चाल, बाल, कपड़े वगैरह का मनोवैज्ञानिक बाजार वैसा ही लूटना चाहेंगे। वे नैतिकता और प्रेम के विशाल मुनाफे बिना जवाबदेही के उन स्रोतों से एकत्र करना चाहते हैं, जो उनके पापों में भी बाजार खड़ा कर दे।

संजय दत्त, खलनायक से मुन्ना भाई एमबीबीएस होकर चल जाएगा, सलमान ‘किक’ से ‘प्रेम रतनधन’ पा लेगा और शाहरुख अगली फिल्म की पहली तस्वीर भी ‘फैन’ के खाते में उसी वर्दी वाले प्रकरण की जारी करेगा, जो वानखेड़े के बाहर घटा था।

तो फॉर्मूला यही है कि ‘चार फिल्म वालों के अरब डूब जाएंगे’ इस गणित से भी चलो भोलेपन का बाजार लूट लें। जैसा खुद सलमान की एक फिल्म कहती है, अपराध तो ‘किक’ है।

किसी भी मानवीय तंत्र में सुबूतों, सजाओं, सच्चाइयों का खेल नहीं, व्यक्तिगत नैतिकताओं का वास्तविक मोल आंकना काम्य होता है। किंतु, मनोरंजन के शातिर अर्थशास्त्र ने दुआओं के बॉक्स ऑफिस से उस प्रक्रिया को विफल कर दिया है।

जौहर दिखाई दे रहा है, सुल्तान बन रहे हैं, फैन उमड़ रहे हैं। अभी तो खूब तस्वीरें चलेंगी, टीआरपी का इंतजाम आप ही करेंगे न?l be posting loads of engaging content, so be sure to keep your blog organized with Categories that also allow visitors to explore more of what interests them.

Create Relevant Content

Writing a blog is a great way to position yourself as an authority in your field and captivate your readers’ attention. Do you want to improve your site’s SEO ranking? Consider topics that focus on relevant keywords and relate back to your website or business. You can also add hashtags (hout your posts to reach more people, and help visitors search for relevant content.

Blogging gives your site a voice, so let your business’ personality shine through. Choose a great image to feature in your post or add a video for extra engagement. Are you ready to get started? Simply create a new post now.

Comments


bottom of page