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दसवें हाथ में डिब्बा बारहवें में श्रद्धांजलि

उपहार और मौत आलोचना से मुक्त होते हैं। आपको कोई उपहार दे, तो यह देखना कि उसकी कीमत क्या होगी, दुष्टता कहलाएगा। आपकी मौत के बाद आपकी दुष्टताओं का रंच मात्र भी उल्लेख करने वाले की सीआर बिगाड़ देगा।

यह मान लिया जाता है कि मरने वाला ऋषि था और आने वाला उपहार अंततः उपहार है, जिसका आदर के अलावा कुछ नहीं हो सकता। मेरे पास एक उपहार आया। दूसरे मुहल्ले में एक सज्जन मर गए। उपहार में डिब्बा मिला था। मरने वाले सज्जन दो-तीन हफ्तों से पूरे मूड में थे कि मर जाएं। डिब्बा काफी चमकदार था। सज्जन बहुत धारदार थे।

मुझे लगता है कि मैं उपहार के डिब्बे लूं और देश महान विभूतियों से छूट जाए, यह कोई अच्छा योग नहीं है। पर उपहार तारीफ मांगता था, दिवंगत को श्रेष्ठ श्रद्धांजलि की जरूरत थी। मेरी समस्या इस तरह श्रेष्ठताओं के बाध्यकारी चुनाव पर आ खड़ी हुई।

ऐसे मौके हर एक के जीवन में आते हैं। तीन वैध और चार अवैध पत्नियां रखने वाले नारी जाति के उद्धारक के तौर पर याद किए जाते हैं। जिंदगी में जिन्होंने सौ गरीबों का नाश किया वे जनप्रिय कहलाते हैं। अगर वे धतूरा उगाकर नशे का धंधा करते थे तो कहना पड़ेगा कि शिवशंकर के भक्त समुदाय में उनसे बढ़कर कोई हुआ ही नहीं।

एक शराब तस्कर की मौत पर स्‍थानीय विधायक की श्रद्धांजलि-विज्ञप्ति में� लिखा गया-देश ने देवताओं के प्रिय रस का अनूठा रसिक खो दिया। गटर में धुत्त होकर गिरने के बाद मरे एक महाशय के लिए श्रद्धांजलि सभा में यह तथ्य रेखांकित किया गया कि वे अपने संकल्प को पूरा करने के लिए जान पर खेल जाते थे। उनकी संकल्प शक्ति युगों तक प्रेरणा देती रहेगी।

मुझे जो उपहार मिला, उसमें चमकीली पन्‍नी के अलावा कई उल्लेखनीय बातें थीं जैसे उस पर लगी चिप्पी से पता चलता था कि देने वाला भारी-भरकम आदमी है, पर बहुत विनम्रता के साथ दे रहा है। डिब्‍बे पर दो-एक ‘उखड़े हुए’ निशान थे। मेरी जिज्ञासा उन उखड़ने वाली चिप्पियों पर जा टिकी, जो इस चिप्पी से पहले वहां रही होंगी। जो सज्जन मरे, उनके बारे में बहुत जोरदार छपा।

मेरी जिज्ञासा थी कि पहले जो अन्य सज्जन मरे थे, उनके बारे में लिखी पंक्तियां, छपने के दौरान इनके भी हिस्से में आ गईं या यह एक्सक्लुसिव थी? सयाने बताते हैं कि उपहार पर लगी चिप्पियों, स्वर्गीय नेता के अतीत तथा औरतों की उम्र के बारे में पूछना ठीक नहीं होता। उखड़ी हुई चिप्पियां नेता की सज्जनता का कुछ नहीं बिगाड़ पातीं, ठीक वैसे ही जैसे उपहार पर दिखते चिप्पियों के निशान उसकी अहमियत कम नहीं कर सकते। मैं यदि चिप्पियों पर रुक गया तो उपहार और नेतृत्व दोनों बेकार चले जाएंगे।

मैं तथ्य ढूंढने निकला। यह खोज थी कि उपहार और मृतात्मा-दोनों के सम्मान को बनाए रखने के लिए किस स्तर पर व्यवहार करना चाहिए? क्या अच्छे उपहार-भोगी और अच्छे श्रद्धांजलि वक्ता इस मामले में सही प्रकाश डाल सकते हैं? उत्तर मिले। यह खोज भी बिलकुल वैसी ही साबित हुई जैसे एक ही नेता की पचास सभाओं के एक ही भाषण को पचास नए शीर्षकों से पेश करने का कौशल दिखाया जाता है।

विशेषज्ञ ने बताया, उपहार का डिब्बा अगर दसवें हाथ में जाकर खुले तो उत्तम होता है। एक दूसरे को दे, दूसरा तीसरे को टिका दे। उपहार की खासियत यही है कि वह मजबूरी में या औपचारिकतावश दिया जाता है। इन दो कारणों के अलावा अन्य कारण हो तो उपहार देने वाले पर शक करना चाहिए। शक वाले उपहार इसके बाद और भारी होकर लौटते हैं। जो लोग पहले ही हाथ में उपहार खोल लेते हैं, वे गरीब और नासमझ होते हैं। उन्हें चाहिए कि उपहार के धंधे में पड़ने की बजाय अभिनंदन की चिट्ठियों से ही गुजारा करें। ठीक वैसे जैसे मरने वाले पर हुई तारीफ की बौछारों पर दुखी होने की बजाय अखबारों में चार तीर-तुक्के और जोड़ दिए जाते हैं।

लगभग हर मरने वाले के बारे में पता चलता है कि उसके जाने की वजह से देश ने एक महान आदमी खो दिया है। किसी स्‍थान के बारे में भी बताया जाता है कि उसे अब कोई नहीं भर सकेगा। उपहार जब दसवें हाथ में जाकर खुलता है, तो यह बयान कर रहा होता है कि इस दसवें की जगह कोई नहीं ले सकेगा। जैसे श्रद्धांजलि एक बयान को दूसरे पर टिकाने का खेल है, उपहार भी एक हाथ से दूसरे को टिकाने का खेल है।

भावनाएं और प्रेम यहां ‘पास’ कर दिए जाते हैं। मूल प्रेम, मौलिक भावना की चिप्पियां दस बार उखड़ चुकी होती हैं। अंत में जिस दसवें के पास डिब्बा पहुंचता है,उसे बासी मिठाई हाथ लगती है। मौत और उपहार में यही फर्क है। उपहार की मिठाई दसवें हाथ में बासी हो जाती है, सज्जनों की श्रद्धांजलि दसवें राउंड में भी ताजा बनी रहती है। मैं सोचता हूं, इस तरह तो ‘उपहारों की मौत’ ज्यादा भली होगी।

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