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पीएम इन वेटिंग फिटनेस सर्टिफिकेट के साथ

मेरे एक मित्र हैं। वे प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं, पीएम इन वेटिंग हैं। यह आज की बात नहीं है। जब वे दस साल के थे,

तब क्लास के मॉनीटर को उन्होंने इसलिए पीट दिया था कि वे समझते थे कि असल मॉनीटर तो वे हैं। तब बच्चे उन्हें ‘मॉनीटर इन वेटिंग’ कहा करते थे।

थोड़े बड़े हुए तो पार्क में पुलिस वाले को पीट दिया। वजह? वे ‘फ्रेंड इन वेटिंग’ थे। उन्हें लगता था कि सुकन्याओं का समूह उनकी ही तरफ आ रहा है।

समूह दूसरी तरफ मुड़ गया तो वे सहज भाव से उस ओर भागे, किंतु पुलिस वाले ने इसे गैरवाजिब मानकर रोका और नतीजे में उनसे पिट गया। एक बार उन्होंने रेलवे प्लेटफॉर्म पर आंदोलन खड़ा कर दिया। नाम वेटिंग लिस्ट में था और कन्फर्म नहीं हुआ, तो वे ‘पैसेंजर इन वेटिंग मूवमेंट’ के लीडर हो गए।

मैं उनसे अक्सर पूछता हूं, आप ‘इन वेटिंग’ क्यों रहते हैं? आप पक्के हो क्यों नहीं जाते? मसलन ‘फ्रेंड इन वेटिंग’ की बजाय ‘फ्रेंड वाले’ हो जाएं, ऐसा क्यों नहीं होता?

‘मॉनीटर इन वेटिंग’ की बजाय ‘मॉनीटर ही हो जाएं, यह क्यों संभव नहीं हो पाता? और यदि यह सब संभव नहीं होता, तो उसके लिए आंदोलन करने की या ‘इन वेटिंग’ का ऐलान करने की जरूरत क्या है? जो पक्के हैं या हो सकते हैं, उन्हें प्यार और ताकत दीजिए।

वे गंभीर हो जाते हैं। इतिहास में उतर जाते हैं। भविष्य की निर्णायक सरकार की मुद्रा में हाथ उठाते हैं। चेहरा कांपने लगता है। मैं हाथ थामने की कोशिश करता हूं, वे हाथ बांध लेते हैं।

‘यह कोई बात नहीं हुई कि आपसे सवाल पूछें तो आप हाथ बांध लें।’ एक बार मैंने उनसे पूछा। ‘मैं हमेशा सोचता हूं कि तुम यह सवाल करते ही क्यों हो?’ उन्होंने कहा।

‘इसलिए कि ‘इन वेटिंग’ जैसे शब्दों से आपकी सार्वजनिक छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।’ ‘सार्वजनिक छवि क्या होती है? मैं समझता हूं कि आज से पहले छवि का प्रश्न इस तरह कभी नहीं उठा, जैसा आज उठ रहा है। हमने जो छवि बनाई है, वह पूरी तरह अपनी है और उसे इसी तरह बनाए रखने के लिए किसी की राय की आवश्यकता नहीं है।’

‘मैं आपको राय नहीं दे रहा। मैं सिर्फ यह जानना चाहता हूं कि आप बचपन में मॉनीटर बनना चाहते थे, नहीं बन सके। ‘मॉनीटर इन वेटिंग’ ही रह गए, तो ऐसे विचार का फायदा ही क्या हुआ?’

‘मैंने कभी ऐसा विचार व्यक्त नहीं किया कि मैं कक्षा का नेतृत्व करना चाहता हूं। लेकिन यह देखना मेरा धर्म था कि कोई दूसरा मॉनीटर न बन जाए। यदि दूसरे को न बनने देने की प्रक्रिया में आप मुझे महत्वाकांक्षी घोषित कर दें, तो यह आपकी समस्या है।

मैं कक्षा के भविष्य के प्रति चिंतित था और उसे आज भी सर्वथा उचित पाता हूं।’ उनकी मुद्रा में जबर्दस्त दार्शनिक तत्व शामिल हो गया जब मैंने उन्हें ‘फ्रेंड इन वेटिंग’ उर्फ पार्क में पुलिस की पिटाई का स्मरण कराया।

वे इस बार अधिक दृढ़ निश्चय के साथ बोले, ‘प्रेम की आकांक्षा या मित्रता की तृष्‍णा एक मानवीय मूल्य है। पुलिस का दखल मानवीय मूल्यों को नष्ट करने का प्रयास बन जाता है। मैं ऐसा मानता हूं कि ऐसे में प्रतिरोध करना जिम्मेदार प्रतिपक्ष का स्वाभाविक कर्तव्य है।’

इस वार्ता के चलते मैंने बहुत कोशिश की कि उनसे जीवन दर्शन और महत्वाकांक्षाओं के बीच यह बता सकूं कि वे किसी राष्ट्रीय पार्टी के बड़े नेता नहीं हैं, जो ‘पीएम इन वेटिंग’ जैसे महत्वपूर्ण प्रतीक से सुशोभित किए जा सकें।

प्रधानमंत्री बनने के लिए आपको राहुल गांधी, लालकृष्‍ण आडवाणी, नीतीश कुमार, मुलायम सिंह आदि के स्तर तक उठना होता है। सरकारें बनानी और चलानी होती हैं।

आपकी उम्र यह है कि आप हत्यारों को शहीद, दंगाइयों को शरीफ और सेवफल को शरीफे से अलग नहीं कर पाते। आराम कीजिए। बच्चों के साथ खेलिए और उन्हें आगे बढ़ने की ताकत दीजिए। वे एकदम खड़े हो गए।

‘तुम क्या समझते हो? मैं किसी और को ‘पीएम इन वेटिंग’ बनने दूं?’

‘ऐसा लगता है कि यह काम आपको राष्ट्रीय हित में कर ही देना चाहिए। आपका स्वास्‍थ्य ठीक नहीं है।’ ‘स्वास्‍थ्य इसीलिए ठीक नहीं है कि तुम किसी और को ‘पीएम इन वेटिंग’ कहना चाहते हो। मैं इसे अस्वीकार करता हूं। मुझे राष्ट्र की चिंता है। यह गर्त में चला जाएगा।’

‘नहीं, मैं तो चाहता रहा हूं कि आप ‘पीएम इन वेटिंग’ नहीं, पीएम ही बनें। लेकिन जैसा कि मैंने कहा, आपने यात्राएं की हैं, लेकिन मुहल्ले से बाहर निकले नहीं है, सिर्फ इतिहास में रुके हैं और आपका स्वास्‍थ्य भी ठीक नहीं है……….।’

रुक जाओ! वे तमतमा उठे। उन्होंने जेब में हाथ डाला और अपना फिटनेस सर्टिफिकेट मेरे सामने रख दिया। अब मेरे सामने कोई चारा नहीं है कि फिटनेस सर्टिफिकेट के साथ उन्हें ‘पीएम इन वेटिंग’ मान लूं। देश का चाहे जो हो, उनका तो मान रखना ही पड़ेगा।

वैधानिक स्पष्टीकरणः इस आलेख का भाजपा की गोवा कार्यकारिणी से कोई संबंध नहीं है। इसके सारे पात्र काल्पनिक हैं।

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