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प्याज की सेंचुरी प्याज का संन्यास

क्या तूमार बंधा साहब! सचिन संन्यास को प्राप्त हो गए। आईपीएल के कुल धंधे से आधा धंधा इस अकेले धंधे से हो गया। माना कि क्रिकेट इस देश का धर्म है और सचिन तेंदुलकर इसके भगवान, मगर इन भगवान की दुकान का हिसाब देखकर बड़े-बड़े पंडे ध्वस्त हुए जा रहे हैं।

प्याज के मन में सवाल उठा है कि वह बाजार को सेंचुरी पर ले जाकर भी फ्रंट पेज के जैकेट में क्यों नहीं बदल पाता? ‘एक अनुत्पादक, सट्टेबाजों से घिरा और चीयर लीडर्स की चीखों से भर दिया गया मनोरंजक कार्यक्रम जिसमें बोली-नीलामी का भयंकर कारोबार भी हो,

मीडिया में महात्मा गांधी के बलिदान दिवस के बराबर घटना खड़ी कर देता है और मेरे आर्थिक योगदान का कोई नोटिस तक नहीं ले रहा।’ प्याज ने टमाटर से कहा।

टमाटर ने कहा, ‘मैं उसी संन्यास के दिन एक साल में पहली बार 122 प्रतिशत ज्यादा उछला, मगर कोई सलामी एसएमएस अभियान नहीं चला। ठीक है कि सचिन के संन्यास के दिन तुम 279 प्रतिशत ऊपर उठ गए। ठीक है कि यह डबल सेंचुरी थी। मगर तुम्हारी तो ऊपर जाने की आदत हो गई है। तुम्हारा आर्थिक योगदान पेट्रोल की तरह ही अब बाजार को कोई खास किक नहीं देता।’

प्याज को अचंभा हुआ। चुनाव चल रहे हैं। भ्रष्टाचार चल रहा है। हिन्दुस्तान के प्रधानमंत्री को श्रीलंका तक पहुंचने में मुश्किल हो रही है। पाकिस्तानी विदेश मंत्री कश्मीर में जाकर हाथ हिला रहे हैं। इन सबका कोई नोटिस न ले तो कोई बात नहीं। पर कोई वक्त था जब पूरी सरकार प्याज के भाव पर गिर गई थी। यह कैसा वक्त आया है जब महंगाई, हजारों करोड़ के फोकट खेल के आगे पिट गई है।

‘क्या यह ठीक नहीं होगा कि देशवासी प्याज पर इस तरह दबाव बनाएं कि देश चलाने वालों की मुसीबत हो जाए?’ प्याज ने पूछा।

‘देशवासी पिछले साल एक तरफ आलू-टमाटर सड़कों पर फेंक रहे थे क्योंकि उन्हें दाम नहीं मिल रहा था। दूसरी तरफ उन्हीं का ब्लैक हो रहा था। यह शास्त्र समझना हर किसी के बूते की बात नहीं है।’ टमाटर को नीतीश कुमार और लालकृष्ण आडवाणी की साझी धर्मनिरपेक्षता के फॉर्मूले से अर्थनीति समझाने की इच्छा हो आई। उसने आगे कहा, ‘तुम्हारे नाम मीडिया वाले कोई ‘सलाम प्याज’ एसएमएस अभियान नहीं चलाने जा रहे। सचिन पैसा देता है। उसके नाम सलामी एसएमएस से करोड़ों का धंधा होता है। तुम्हारे अभियान से गरीबी केंद्र में आती है, बाजार पिटता है। लोगों को अगर यह समझ में आ जाए कि प्याज की डबल सेंचुरी पर सरकार को निपटा देना चाहिए तो बाजार की मुसीबत हो जाएगी। मीडिया इस मुसीबत को क्यों मोल ले?’

‘तो क्या मीडिया सिर्फ सौदागरों और कारोबारियों के खाते से चलता है?’

‘तुम क्या समझते हो, तुम्हारी डबल सेंचुरी से चलता है?’

‘नहीं, मैं तो समझता था कि शाहरुख खान और विजय माल्या से चलता है। दोनों खाने में प्याज खाते हैं।’

‘बीच में मैं भी समझने लगा था कि राडिया और राजा से चल रहा है। दोनों मेरा सॉस खाते हैं।’

‘नहीं-नहीं, मुझे एक बार गलती से लगा था कि अन्ना हजारे से चल रहा है। वहां प्याज-रोटी खाने वाले कैमरे में दिख रहे थे।’

‘क्या बात करते हो? ऐसे तो कसाब के सामने मुझे लगा था कि टमाटर का सॉस, सब दूर खून की शक्ल में बिखरा पड़ा है।’

‘तुम फिल्मी बातें कर रहे हो।’ प्याज ने नाराज होकर कहा।

‘तुम ज्यादा ही इल्मी उम्मीदें कर रहे हो।’ टमाटर ने दार्शनिक विचार दिया।

दर्शनशास्त्र और क्रोध के मिश्रण से प्याज और टमाटर के बीच जुबानी जंग तेज होने लगी। दोनों के बीच बहस इस दिशा में मुड़ी कि देश और देशवासियों की प्राथमिकता क्या है? दोनों ने निष्कर्ष निकाला कि उनका बाजार ऊपर जाने के बावजूद वे सचिन के धंधे की तरह कोई धंधा खड़ा करने के काबिल नहीं हैं। टमाटर तीसरे मोर्चे की संभावनाओं की तरह बार-बार यह सोचता था कि यदि वे सिर्फ सब्जी होने से ऊपर सोचें तो उनकी प्रतिष्ठा बेहतर होगी। प्याज को यह समझाना फिर भी कठिन हो रहा था कि उसे पिज्जा की विदेशी दुकानों से अपनी रेटिंग लेनी चाहिए, न कि गरीब की थाली से।

प्याज रह-रहकर दक्षिण पंथ से राष्ट्रवाद की जुगलबंदी पर लचक उठता था, टमाटर त्रिशंकु संसद-विधानसभा पर ध्यान देने की सलाह देता था। प्याज को आंसू और गरीबी के संभावित बाजार की महत्ता में अभी भी भरोसा था। टमाटर को पक्का यकीन था कि क्रिकेट के नए धंधे को पुरानी गरीबी अब कभी पीट नहीं सकेगी। प्याज का सपना था कि उसके दोहरे शतक पर सरकार हिलाने लायक माहौल बने।

टमाटर का कहना था कि सरकारें कोई भी हों, हिलती नहीं हैं सिर्फ हिलाकर रखती हैं। प्याज कृषि मंत्री की सहकारिता और सचिन तेंदुलकर के संन्यास-बाजार से त्रस्त प्रतीत होता था। टमाटर तेंदुलकर की रेस्टोरेंट-शृंखला से अपनी ब्रांडिंग की रणनीति पर जोर देकर यथार्थवादी मूल्यवत्ता पर व्यस्त रहने की राय दे रहा था। प्याज को अभी भी लग रहा है कि वह सब्जी बाजार से संन्यास ले ले तो हा-हाकार मच जाएगा।

टमाटर जानता है कि सचिन के संन्यास का तो बाजार है ही, उसके संन्यास के बाद लौटकर क्रिकेट के दूसरे बॉक्स में बैठने का भी पक्का इंतजाम है।

प्याज के संन्यास का कोई ब्रांड नहीं है। उस ब्रांड का कोई लिवाल नहीं है।

प्याज को मीडिया का जैकेट चाहिए और मीडिया को क्रिकेट चाहिए। जो धंधा देगा, वही जैकेट लेगा। टमाटर का प्रस्ताव है कि अभी ताली बजाओ, प्याज की सेंचुरी और प्याज का संन्यास, फिर किसी क्रांति में देखेंगे।

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