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हर उल्लू कुछ कहता है


कहते हैं उल्लुओं को दिन में दिखाई नहीं देता। उस पर बैठकर रात को लक्ष्मी आती है। कितने ही उल्लू ऐसे हैं जिन्हें दिन में दिखाई भी देता है और इसीलिए लक्ष्मी से उनकी लड़ाई भी चलती रहती है। हम और आप शायद इनमें से एक हैं। हाल में एक अनुसंधान का निष्कर्ष आया है कि नैतिकता हमें प्रकृति से उपहार में मिलती है। यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिसे समाज और स यताओं ने ईजाद किया है। उसमें मिसाल दी गई है कि मान लीजिए एक गुफा में बाईस पर्यटक पहले जा चुके हैं और एक बहुत मोटी महिला, जो तेईसवीं है, जाते व त बीच में फंस जाती है। ऐसी स्थिति में आप या रास्ता सुझाएंगे? बाईस लोगों को दम घुटने के लिए छोड़ देंगे या तेईसवें की जान का जोखिम लेकर किसी तरह बाहर निकालेंगे? दूसरी एक मिसाल है। मान लीजिए दस लोग डूब रहे हैं। आप मोटरबोट में स्पीड तेज करते हुए उन तक पहुंचने जा रहे हैं, ताकि उन्हें बचा सकें, इसी बीच पीछे की तरफ आपका एक साथी गिरने की स्थिति में आ जाता है। आप मोटरबोट रोककर उसका इंतजाम देखना तय करेंगे या उन डूबतों तक तेजी से पहुंच कर रास्ता आसान करेंगे? एक तीसरी मिसाल है। मान लीजिए दस लोगों के साथ आप किसी ऐसी जगह छुपे हुए हैं जहां डकैतों या आतंकवादियों की आवाजाही बनी हुई है। जरा सी आहट से सबकी जान पर बन सकती है। तभी आपके बच्चे को खांसी आने को है तब आप उसके मुंह पर हाथ रखकर उसे दबा देंगे या उसके दम घुटने की आशंका में खांसने देंगे? पहली बार में आपका उ ार अलग हो सकता है, लेकिन थोड़ी देर सोचने के बाद वह बदल भी सकता है। परिस्थितियों के बर स निर्णय लेने की नैतिकता पूरी धरती पर एक है। यानी एक अमेरिकी या स्विस की नैतिकता किसी भारतीय या डेनिश आदमी से भिन्न नहीं होती। समाजों के तौर-तरीके अ जब हम इस अनुसंधान के निष्कर्ष को देखते हैं और रोजाना छप रही तस्वीरों को जिनमें मालेगांव, साबरकांठा, अहमदाबाद, दिल्ली या जोधपुर का खून बिखरा पड़ा होता है तो फैसला थोड़ा आसान हो जाता है। एक युवराज को मजदूरों के बीच नई-नई तगारी से मिट्टी डालते हुए, एक मंत्री को एक कुलपति से मिलते हुए या सोमालियाई समुद्री डकैतों द्वारा बंधक बना लिए गए भारतीय कैह्रश्वटन तथा उसके क्रू के बचाव की गुहार में अर्जी लेकर यहां-वहां भटकती पत्नी को देखते हैं तो चीजें और भी पु ता हो जाती हैं। कहते हैं उल्लुओं को दिन में दिखाई नहीं देता। उस पर बैठकर रात को लक्ष्मी आती है। कितने ही उल्लू ऐसे हैं जिन्हें दिन में दिखाई भी देता है और इसीलिए लक्ष्मी से उनकी लड़ाई भी चलती रहती है। हम और आप शायद इनमें से एक हैं। मनमोहन रिमोट से मन मोहें या बुश हर हाल में खुश हों तब भी ये उल्लू कुछ कहते हैं।… योंकि, हर उल्लू कुछ कहता है। और, हर कहने वाला उल्लू, नैतिकता के प्राकृतिक उपहार वाले वैज्ञानिक सिद्धांत के अनुसार, निरा ‘उल्लूÓ नहीं होता! और अंत में EW, FC और SN फॉर्मूले का हिट उपदेश काफी काम का साबित हो सकता है। EW यानी Earthworm उर्फ केंचुआ पीढिय़ों से यह सीखकर आया है कि रीढ़ की हड्डी नहीं होनी चाहिए। FC यानी Folding Chair उर्फ ऐसी कुर्सी जिसे मनचाहे जब फोल्ड करके दीवार के सहारे टिकाया जा सके – इस किस्म की $गैरत होनी चाहिए। हरिशंकर परसाई का मुहावरा लें तो SN यानी Sharp Nose उर्फ तीखी नाक रबर की बनी हो तो बहुत सुंदर। जितनी ज्यादा कटेगी, चमकेगी और नई दिखेगी। आमतौर पर जो लोग FW+FC+SN सूत्र का उपयोग करते हैं, वे दुनिया में बड़ा दाम कमाते हैं। दाम से नाम मिलने में आसानी हो सकती है और नाम के बाद किसी को और कुछ या चाहिए?

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